चारों ओर नज़र दौड़ाता हूं
पिताजी नज़र नहीं आते
आशा की एक किरण अभी भी जिंदा है..
आशा की एक धूंधलाती किरण इतने सालों में
अभी भी कायम है...
कि पिताजी लौटेंगे..
बताके नहीं जाने वाले पिता
आते थे... देर रात ही सही
दो दिन ही सही.. या फिर दो महीने ही सही..
लौट के जरूर आते थे.. हमारे अभावों के जंगल में
और कुछ न सही..
बहुत सारा प्यार ले आते थे पिता
उनका प्यार बहुत सच्चा था
अपने बच्चों के प्रति
कुछ कर न पाने के दर्द और कसक के साथ
उनका प्यार बहुत सच्चा था
इतने सालों में बता के नहीं जानेवाले पिता
क्या कभी फिर लौटेंगे हमारे जीवन में..?
- राकेश कुमार श्रीवास्तव
पिताजी नज़र नहीं आते
आशा की एक किरण अभी भी जिंदा है..
आशा की एक धूंधलाती किरण इतने सालों में
अभी भी कायम है...
कि पिताजी लौटेंगे..
बताके नहीं जाने वाले पिता
आते थे... देर रात ही सही
दो दिन ही सही.. या फिर दो महीने ही सही..
लौट के जरूर आते थे.. हमारे अभावों के जंगल में
और कुछ न सही..
बहुत सारा प्यार ले आते थे पिता
उनका प्यार बहुत सच्चा था
अपने बच्चों के प्रति
कुछ कर न पाने के दर्द और कसक के साथ
उनका प्यार बहुत सच्चा था
इतने सालों में बता के नहीं जानेवाले पिता
क्या कभी फिर लौटेंगे हमारे जीवन में..?
- राकेश कुमार श्रीवास्तव
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