शनिवार, 10 अगस्त 2019

दख़ल

कहानी




- मुकुल कुमार सिंह चन्देल

दो अलग-अलग स्थानो पर दो प्रतिद्वन्दी मौखिक बमों का प्रहार कर रहे हैं वह भी सबके सामने और अप्रैल-मई के महिने में। गर्मी की मार से सड़कों एवं गलियों के किनारे छाया की खोज में कुत्ते बेहाल, जीभ छ: इन्च के स्थान पर एक फूट की हो गई है। गायों की दशा तो ऐसी हो गई है कि बगल से यदि कोई गुजर जाये तो इनकी मूक आखें तृष्णा मिटाने हेतु याचक बन मुँह से हुफ्फ-हुफ्फ की ध्वनि कर रही है। धूप इतनी तेज कि पलकें स्वत: बन्द हो जा रही है। अधखुली आँखों के साथ इन भटकते पशुओं का पेट तीव्र गति से रॉक एण्ड रोल करने की प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करना चाह रहा है। धन्य हैं ये पशु जिनसे प्रेरणा पाकर मानव बाहुबली अपने-अपने समर्थकों के साथ खचाखच भरे मैदान में डेरा डाले हैं और इन्हे देखकर नीलाम्बर मुस्करा उठा। समर्थकों के सामने एक उँचा मंच, कुर्सियों पर विराजमान नेता-नेत्री सफेद वस्त्रों में आँखें काले एवं चेन्जर्स चश्मों से सुसज्जीत एक-दूसरे से खुसुर-पुसुर कर रहे हैं। उन्ही के सामने लम्बे बेंच को भी सफेद चादर से ढँक कर कई फूलदानी फूल के तोड़े से सजाया गया है। नेताओं-नेत्रियों के दाहिने-बाँये खड़े सुरक्षा-गार्डों की चौकस आँखें। आखिर जनता-जनार्दन की सुरक्षा का अर्थ नेताओं की प्राण रक्षा जहाँ जनता की हत्या बकरों की भाँति प्रतिदिन होती रहती है। मैदान मे रह-रहकर समर्थक खड़े हो रहे हैं और वन्देमातरम् –जिन्दाबाद के नारे लगा रहे हैं एवं दलीय परचम लहराते हैं। एक-एक करके सभी वक्तागण मौखिक बमों का प्रहार करने आते हैं –जाते हैं सारा मैदान तालियों की गड़गड़हट तथा नेता-नेत्री की जय,भारतमाता की जय से गुंज उठता है और लगता है जैसे बैशाख-जेठ की आकाश को गोली मार दी जायेगी और जनता-जनार्दन समर्थक विजयामृत पीये उल्लास करता है। शुरु हुआ प्रधान वक्ता का वक्तव्य—
उपस्थित भाईयों-बहनों एवं मेरे दलीय कर्मीवृन्द.....आज हमारे सामने बड़ा हीं संवेदनशील प्रश्न आया है, हमारा देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से संपन्न है और पिछली सरकार ने देशवासियों से जो वादे की थी उसे कूड़ेदान में डाल दिया है उपर से आपलोग देख हीं रहे हैं कि हमारे विरोधी नेता इस राज्य के निवासियों को विदेश भाग जाने की धमकी दे रहे हैं। परन्तु मैं ऐसा नहीं होने दूंगी, भले हीं मुझे इसके लिये शहीद हीं क्यों न होना पड़े पर मैं पीछे नहीं हटनेवाली। अत: इस सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा(संग हीं संग सारा मैदान सूरज को चिढ़ाते हुये दीदी की जय का घोष करती है और प्रधान वक्ता चूप होकर देखता है कि उसने डॉयलाग ठीक बोला है या नहीं)। तो बन्धुगण हम सबका राज्य एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। यहाँ मुसलमान-सिख-ईसाई-बौद्ध-जैन सब मिलकर रहते हैं और इसी मिश्र संस्कृति ने हमारे राज्य को उन्नति के शिखर पर पहुँचाया है तो क्या इन्हे आप भागने को मजबूर करने देंगे? भाईयों-बहनों क्या इस विषय पर आप शांत रहना पसंद करते हैं? (समर्थकों के बीच से उल्लासपूर्ण जबाब गुंजता है “नहीं”) हाँ तो मैं कह रही थी ऐसे कूप्रयास करनेवाले विरोधी असामाजीक तत्वों को इस राज्य से भगाने का वक्त आ गया है(ऐसे दुस्साहसी की आँखे फोड़ कर रख दी जाय, हाँ फोड़ दी जाय का गुंजन अधिक तीव्र होता है एवं वक्ता पुन: चुप हो जाती है और श्रोताओँ-समर्थकों की ओर देखती है तथा दोनों हाथ उठाकर कहती है),बन्धुगण हमारा दल सचेतन मानवों का है-सचेतन श्रमिकों का है जो हिंसा में विश्वास नहीं करती है। इसलिए ऐसे अमानवीय विचारधारा का पोषण करने वाले शत्रुओं का जबाब ई.वी.एम. मशिनों से देगी.......।
वक्तव्य जारी है। श्रोताओं के बीच कई फेरीवाले जो बादाम, लॉजेन्स, गुटखा घुम-घुम कर बेच रहा है। एक बादामवाला अधेड़ उम्र का और दूसरा लॉजेन्सवाला पच्चीस या छब्बीस वर्ष का युवक पास-पास घुम रहे हैं। बादाम बेचनेवाला युवा फेरीवाला से कहता है “क्या हो गया है हमारे नेताओं को जो राजनीति में धरम-करम को भी नहीं छोड़ा”। प्रत्युत्तर में युवक कहता है-अरे काका,राजनीति आप ऐसे अनपढ़ बूढ़ों का नहीं है, हमारे ऐसे यंगों का जो चश्मा पहनता है,मोबाईल फोन रखता है.....अभी बात पुरी भी नहीं कर पाया था की एक बैठा हुआ श्रोता आंखों हीं आंखों से उस युवक को इशारा करता है इस तरह की बातें मत कहो। युवक का हृदय धक्क से कर उठा और वह चुप लगा गया परन्तु बादामवाला बुदबुदाता है-हे भगवान! आदमी को आदमी से अलग करने की राजनीति। छी: -छी:। और आगे बढ़ जाता है। माइक पर प्रधान वक्ता का वक्तव्य सुनाई देता है........ तो बन्धुओं अधिक से अधिक संख्या में वोट देकर हमारे दल को वोट दे कर विजयी बनायें। इतना कहकर मैं अपना वक्तव्य समाप्त करती हूं। साथ हीं साथ श्रोताओं एवं समर्थकों का जयघोष और वन्देनातरम् –जिन्दाबाद के नारों से आकाश भी डर जाता है, मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ।
उसी मैदान के दूसरे छोर पर भी ऐसे हीं आयोजन और प्रधान वक्ता अपने ओजपूर्ण शाब्दीक परमाणु बम का प्रहार कर रहा था – देशवासियो, हम सभी की मातृभूमि एक है-हमारे पूर्वज एक हैं-फिर हमें अपनी अलग पहचान बताने की क्या आवश्यकता है-ईश्वर की उपासना की स्वाधिनता हमारे सभ्यता की नींव में है तभी तो सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, अग्नि, जल, ईन्द्र आदि की आराधना करते हुये भी कभी भी हमने अपने आपको अलग नहीं समझा बल्कि हम एक हीं देश की संतान- एक माँ की संतान हैं-माँ के स्नेहरस पर समानाधिकार जन्म से हीं पाया है, बाहर से चलकर आई विचारधारा हमारे हीं देश का अन्न,जल,वायु,प्रकाश ग्रहण कर सुखी जीवन यापन कर रहे हैं और अब उस विचारधारा के अनुरुप अपनी अलग पहचान बना हमसे मिलकर नहीं बल्कि हमें डराकर उस आयातित विचारधारा के प्रति दासत्व स्वीकार करने का प्रयास कर रहे हैं। वे हमारे संविधान को नहीं मानेंगे,हमारे संस्कार को नहीं मानेंगे तो फिर हम तो चुप नहीं रहने वाले। जो लोग खेलकूद में हमारे देश की हार पर विदेशी परचम लहराकर जश्न मनाते हैं अर्थात हमारे हीं देश का खायेंगे और हमारा हीं मजाक उड़ायेंगे, यह तो सहन करना असंभव है। हमारे देश के संविधान ने सभी नागरीकों के लिए एक समान शिक्षा, आर्थीक उपार्जन करना, न्याय पाना, धर्म-पालन, बोलने की स्वाधिनता प्रदान की है तो किसी विशेष के लिये अलग न्याय-प्रणाली की व्यवस्था क्यों हो? आज देश को अलग-अलग टुकड़ों में बांटने की सनक राजनीति में फैलाई जा रही है और विशेष वर्ग बना-बना कर केवल वोट जीतो और कुर्सी पर बैठो की नीति का पालन सभी दल के नेता कर रहे हैं। इसके लिये जब जिस नेता का मन होता है हमारे संस्कार को, सभ्यता को सरेआम गालियाँ दे रहे हैं। इतना दुस्साहस नेताओं का,और हम चुप्पी लगाये रहें। नहीं, कभी नहीं। ऐसे अपराधियों को हम क्षमा नहीं करेंगे। साथियों, हमारे हीं संस्कार पर पुरे विश्व में सभी सभ्यताओं की नींव पड़ी है। अत: यह तो कभी पतित हो हीं नहीं सकती है। हाँ समय-समय पर इसमें त्रुटियाँ आई है जिन्हे हमारे पूर्वजों ने दूर किया है और आज यह नैतिक दायित्व हमारा,आपका बनता है कि कुछ त्रुटियाँ फिर से घर बनाई है इन्हे संसोधन करना होगा तथा विघटनकारी तत्वों से मुक्त समाज का, देश का पुनर्निर्माण करना होगा। इसलिए अपने देश को टुकड़ों में बांटने से बचाने,संस्कार की रक्षा करनेवाले दल जो सबको एक संविधान के तले रखे तथा सबका आर्थिक विकास करने का मौका प्रदान कराये उसे अधिक से अधिक परिमाण में वोट देकर दल के सदस्यों को देश का, आप सबका सेवा करने का अवसर प्रदान करें। धन्यवाद। भारतमाता की जय। “जय हिन्द”। वक्तव्य की समाप्ति के साथ-साथ भारतमाता की जय,जयहिन्द के नारों से आकाश गुंज उठा और दलीय समर्थकों, श्रोताओं की भीड़ छंटने लगी। मैदान सुनसान बगीया में बदल गई तथा मुर्झाये फूल की तरह वो सारे फेरीवाले अपने-अपने ग्राहकों के सामने समझदार नागरीक की भाँति भाषण का विश्लेषण कर रहे थे-
ऐसी हीं नीति की आवश्यकता है जो देश को टुकड़े में खण्डित होने न दे। कम से कम इस देश से नमकहरामी करनेवालों को शिक्षा तो मिलेगी।
यही होना चाहिए ताकि सबको रोजगार का अवसर प्रदान करेगा। नेताजी ठीक हीं कह रहे थे कि हमारे उत्सव में ये विशेष लोग शामिल नहीं होते हैं। उपर से इनके इलाके से यदि हमारा कोई धार्मिक प्रोसेशन निकली तो इनके धर्म का उल्लंघन होता है और हमलोग असामाजीक तत्व बनकर पुलिसवालों के हत्थे।
हाँ भाई, वहीं इनका जुलुस एकदम सड़क पर अस्त्रों से लैस तलवार, भाला बर्छी, कटार लेकर कूद-फाँद मचाते हुये चलती है। यह सब देखकर हीं आत्मा काँपने लगती है। आ देखते नहीं हैं इस प्रदर्शनी पर रोक लगाने के जगह पर पुलिस हमहीं लोग का रास्ता रोक देती है।
इसका दोषी भी तो हमहीं लोग हैं न जो इही सब करने के लिए अपने नेताओं को भोट दिया करते हैं। फ्रंट पर हमारे जवानों की पशुओं से भी जघन्य तरीके से हत्याएं हो रही है पर उसके लिए नेता और पढ़े लिखे लोग मुँह पर ताला लगा लेते हैं जैसे मरनेवाला इस देश का संतान था हीं नहीं। उसी जगह यदि किसी विरोध को रोकने गई पुलिस-बी.एस.एफ.-सेना के जवान पर पत्थर फेकनेवाले की मृत्यु हो गई तो ई पढ़े-लिखे लोग ऐसा दहाड़े मारकर रोना शुरु कर देते हैं जैसे इन्ही के बाप या बेटे को मार दिया गया हो।
ना भाई,अबकी बार त परिवर्तन होना हीं चाही। बहुत हो गया है ई दोमुँहापन नीति।
             हर जगह पर सबके मुखरविन्द से केवल वोट की हीं चर्चा। सभी लोग नेताओं की प्रशंसा-शिकायतों में मिर्च-मसाले लगा थालियों में परोस कर ऐसे धूम-फिर रहे हैं कि बिन खाये हीं पेट भर जायें। मालुम पड़ता है निर्वाचन आयोग ने सर्कुलर जारी कर दिया हो कि जब तक चुनाव समाप्त न हो जाय कोई भी नागरीक अपने-अपने कर्मसंस्थानों पर कार्य न करे। पुरे देश में ईलेक्श्न कमिशन का कोड ऑफ कन्डक्ट लागू है परन्तु “जिसकी लाठी उसकी भैंस”कहावत को माननेवाले बाहुबलियों के लिए यह सब बेकार की बाते हैं। तभी तो नेताओं को खुश रखने के लिए प्रशासनिक अधिकारी किसी भी मौके को हाथ से जाना नहीं देना चाहते हैं। और तो और, पुलिस विभाग का आला अधिकारी अपने रुमाल से सबके समक्ष मंत्री महोदय का जूता साफ करते नजर आये।
रात गहरी हो चली थी। लोग-बाग मच्छरों के मार से बचने के लिए मच्छरदानी में दुबके नाकों से गीटार बजा रहे हैं। ग्रीष्म की रानी इठला-इठला कर कह रही है – हे जनता जनार्दन, ए नींद मुझे दे-दे, ए नींद मुझे दे-दे। परन्तु पढ़ी- लिखी आधूनिकता का लबादा ओढ़ी पब्लिक घरों में एसी चला चुके हैं और पंखों की स्पीड बढ़ा कर प्रकृति को हराने की तैयारी कर ली तो भला प्रकृति क्यों पीछे हटे! सो अचानक बिजली की चमक तथा बादलों की फायरींग शुरु। तड़-तड़-तड़ातड़-तड़ातड़ ओले बरसने लगे। धड़फड़ाकर सबकी नींद दगाबाज निकल गई। वह दूसरे से ईश्क फरमाने पंखों को फैलाए फुर्र। खिड़कियों से आर्थिक सम्पन्नता दर्शानेवाले काँचों को, घर की छतें टाली की हो या एसवेस्टस की सीटों की सबकी कचूमर निकाल दिया। लोग बर्फ के बड़े-बड़े ओलों के चुम्बन से बचने के लिए खाटों, पलंगों, चौकियों के निचे घुस गये। बिछावन बड़े कीमती स्पंज के गद्दे एक से एक, सुन्दर-सुन्दर पोशाकें, कागज-पत्तर, पुस्तक सब ओलों के रंग में रंग हो ता थैया-ता थैया करने लगे। यह सब देख नारियाँ और बच्चे अपने रंग में आ हीं गये। लगे सात-स्वरों में गीत गाने। यह सब देख पुरुषों के दल को ईश्वर की याद आई-हे भगवान! हे शंकर! रक्षा करो-रक्षा करो। कुछ अति उत्साही लोग पास-पड़ोस की खबरें अपने-अपने घरों से हीं लेना शुरु कर दिये। अरे गोपाल की माँ,अरी आशा की माँ, सब ठीक-ठाक हो ना,बच्चों को लेकर खाट के निचे छुप जाओ। ओ काका-ओ काकी घबड़ाना नहीं, हमलोग हैं। बाहर चारो तरफ ओलों की सफेद चादर बिछ गई है।
लगभग पन्द्रह से बीस मिनट में हीं ओलों ने ऐसी ताण्डव मचाकर रख दी कि मनुष्यों के सारे अहंकार क्षण भर में हीं धूल के समान। ओला-वृष्टि थम गई। खाट-पलंग-चौकी के निचे दुबके लोग बाहर निकले तो अपने सर के उपर खुले आसमान के दाँतों को छत की बड़ी-बड़ी छिद्रों से झाँकते हुए देखा। बच्चों का रोना थम चूका था। उस अँधेरी रात में हीं बर्फ के टुकड़ों को हाथों में लेकर खेलने लगे। कुछ बड़े भी बच्चे बन गये और लगे ओलों के छोटे-छोटे कणों को एक-दूसरे के उपर फेंकने। इन्हे देख बच्चे और भी ज्यादा उत्साहित हुये। बाहर रास्ते पर तथा छतों-आँगनों में ओले के बिछौने बिछे हुये थे। जिन घरों में ओलों ने तांडव नृत्य किया था वहाँ अन्दर कमरे में यत्र-तत्र बिखरे पड़े थे। एक-एक ओलों का वजन दो से पाँच किलोग्राम तक एवं छोटे ओले की आकृति काँच की गोली से गोले की तरह था। लोगों के चेहरे पर डर-आनन्द-आश्चर्य का मिलाजुला रुप दिख रहा था। सभी के मुँह से एक हीं गीत सुनाई दे रहे थे-“अपने जीवन में ऐसी ओलों की बरसात कभी नहीं देखी”। सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ जो बीस मिनट पूर्व एकदम पक्का नास्तिक था, उसके मुँह से हे भगवान-हे राम उच्चारित हो रहा था। वाह रे मनुष्य! अपनी कागजी डिग्री के दंभ से प्रकृति के अस्तित्व को झूठलानेवाला पल भर में हीं गिरगीट की तरह रंग बदल लिया। इसमें मनुष्य का कोई दोष नहीं है क्योंकि स्वयं कविवर रहीमदास ने कहा है-“दुख में सुमिरन सब करै,सुख में करै ना कोई”। रात किसी तरह कटी, पौ फटते हीं राजनैतिक दलों का सेवा कार्य शुरु। गली-गली, पाड़ा-पाड़ा में घरों के दरवाजे पर पहुँचकर प्राय: सभी दरवाजों पर हाथ जोड़े सर फोड़ने को आतुर। मजेदार बात यह थी कि इन दलों में महिला नेताईनों की कोई कमी नहीं थी कारण भी था सभी राजनैतिक दल नारियों को लुभाने के लिए नारी मुक्ति आन्दोलन को जमकर खाद्द-पानी दे रहे थे अर्थात चारो ओर नारी शक्ती की हवा बह रही थी। हाँलाकि हर एक अच्छाई के पीछे बूराईयाँ अनेक होती है। इसलिए ईन नेताईनों में पुरुषों की तरह स्वाधिनता का सुख भोगनेवाली नारियों की हीं संख्या अधिक थी।
                      उधर ओलों की मार से घायल कच्ची छतों की मरहम-पट्टी कराने के लिये लोग-बाग सड़कों पर निकल आये। नई टालियों,बाँसों,पिरेकों व तारों का मुल्य एक हीं छलांग में नेलाम्बर को छू दिया। कल तक जिनका मुल्य जमीन पर था आज वह बाजार से हीं गायब कर दिया गया। भला व्यापारियों को तो मुनाफे से हीं सिर्फ मतलब है और छत मरम्मत करनेवाली सारी वस्तु दुकानों,गोदामों से पलायन कर गये। घरों,छतों की मरम्मत करने के लिये आवश्यक वस्तुओं की तलाश में लोग इधर-उधर कर रहे हैं,दौड़ रहे हैं ताकि कहीं से भी सामान उपलब्ध हो जाय पर चारो ओर तो गीद्धों का साम्राज्य फैला हुआ है लाशों को नोच-नोच कर खाने का अभ्यस्त हैं और उसकी चपेट मे जीवित को भी नोच लिया जाता है। ऐसे में हीं सुनने को मिला कि पाड़ा के स्थानीय क्लबों द्वारा तिरपॉल,पॉलीथीन सीट और टॉली मुफ्त में वितरण की जा रही है और लोग इसे पाने के लिये लाईनों में खड़े होकर मारामारी कर रहे हैं। बड़े आश्चर्य की बात है क्लबों के द्वारा सार्वजनीक पूजा का खर्च संग्रह करने हेतु दस-बीस रुपयों के खातिर उदार-सभ्य लड़के गुणडागर्दी करते हैं और इस मँहगाई के बाजार में ढेर सारे सहायता की सामग्री ये कहाँ से ले आये? उत्तर स्पस्ट मिल हीं गया कि सामने वोट है एवं सर्वत्र चुनाव आयोग का कोड ऑफ कन्डक्ट लागू है जिसके अनुसार कोई भी राजनैतिक दल प्रत्यक्ष रुप किसी की भी किसी भी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती है और यदि ऐसा हुआ तो उक्त दल पर संवैधानिक कारवाई की जायेगी। इसलिये नेता-नेताईनों ने कानून के फाँका स्थलों के माध्यम से विकल्प रास्ता चुन हीं लिया।  जनता का वोट अपने पक्ष करने का सुनहरा अवसर कोई भी गँवाना नहीं चाहता है। पाड़ा का क्लब तो राजनैतिक आकाओं की कार्यस्थली के रुप में सशक्त तोपखाना है। क्लब के लड़के इन तोपों के गोले हैं। अत: बहुतो को त्राण-सामग्री मिली परन्तु सहायता जिन्हे चाहिये वे तो लाइन में खड़े तो अवश्य हुये पर सहायता नदारद क्योंकि चेहरे पहचान कर मदद की जा रही थी। देखा गया कि ओलों के प्रहार से आहतों में अधिक किसी भी राजनैतिक दल का झण्डा या मीटिंग से दूर रहनेवालों की थी, उनके घरों की झाँकि मारने कोई भी नहीं आया। औसतन सभी राजनैतिक दलों ने इन्हे विरोधी दल का वोटर कहकर दरकिनार कर दिया। इन वोटरों में कुछ तो दादा-दीदी- भैया को मक्खन मारकर तिरपॉल,पलीथीन सीट,टॉली प्राप्त कर लिया और कुछ ऐसे स्वभिमानी थे जो किसी को मक्खन नहीं मार सके। इन लोगों के मन में आक्रोश ने घर बना लिया कि ठीक है हमने इनसे सहायता नहीं मांगे पर चूंकी ये लोग राजनैतिक दल हैं इनके नजर में तो सारे नागरीक एकसमान हैं, कम से कम खोज-खबर तो लेनी चाहिये ताकि क्षतिग्रस्त कितने लोग हुये हैं इसकी जानकारी कम से कम सबको मिले। कोई बात नहीं, जब वोटर स्लीप देने आयेंगे तब पुछा जायेगा।
पाड़ा में ऐसे हीं स्वभिमानी नागरिकों में एक प्राईवेट ट्यूटर का परिवार है। ऐसी प्राकृतिक विपद के समय राजनैतिक दलों के पक्षपातपूर्ण रवैये से मन में आक्रोश जन्म ले हीं लिया था। गृहस्वामिनी तो और भी ज्यादा आक्रामक हो गई थी। एक दिन शाम के समय ट्यूशन चल रही थी। बाहर एक अभिभावक अपनी पुत्री को लेकर दरवाजे पर खड़ी हुई तथा छात्रा अन्दर जा बैठी और गृहस्वामिनी एवं वह अभिभाविका आमने-सामने। पहले अभिवादन तत्पश्चात कुशल-क्षेम। एक शब्द-दो शब्द से बातें आगे बढ़ी(नारियों के स्वाभावानुसार) और ओले के नुकसान व पार्टी के लोगों के द्वारा सहायता प्राप्ती की चर्चा भी हुई। इस चर्चा ने य़ज्ञ में घृत रुपी आहूती का काम किया। गृहस्वामिनी के आक्रोशी अग्निकुंड को हवा मिली तथा ढेर के तले दबी अग्निस्फूलिंग भड़क उठी।
-क्या कहूं, मेरे घर की सारी स्वेस्टस् सिटों में बड़ा सा छेद हो गया है। अभी कोई दो महिने हुये हमने इन्हे लगवाया था....... हाथ में पैसा भी नहीं है कि फौरन बदल दूं।
-ओ दीदी, पार्टीवालों ने आपलोगों का नाम नहीं लिखा ?
-पार्टीवालों के लिये यह पाड़ा मनुष्यों का नहीं है, कोई झाँकी मारने तक नहीं आया ।
-नहीं दीदी, वे लोग आये थे। मेरे पति तो उनलोगों के साथ थे।
-क्या कहती हो! पार्टीवाले इधर आये और मैं नहीं जान पाई, ऐसा हो हीं नहीं हो सकता है।
-मेरा विश्वास करो दीदी। यही तो दोपहर के समय उसके पिता को पॉलीथिन की सीट मिली।
-बड़ी अजब बात है। अजी सुनते हो(पति की ओर मुड़कर बोली)।
-हाँ सुन रहा हूं। पति महोदय अर्थात ट्यूटर ने कहा,
-लगता है हमलोग इस देश के नागरिक नहीं हैं। कम से कम हमारा घर तो देख जाते, हमारा भी नुकसान हुआ है,कमाल है इस पाड़ा के लोगों की सुधी लेने की भी आवश्यकता नहीं समझी! अरे इनसे अच्छे तो हमारे पड़ोस के लड़के गोपाल ,जगॉ हें जो सुबह-सुबह आकर निस्वार्थ भाव से हमारे चालों की टूटी-फूटी टालियों को हटाकर बढ़िया टाली लगाने में कई घंटे पसीने बहाये। केवल मेरा हीं घर नहीं, पास-पड़ोस के सभी घरों की भरसक मदद की। ठाकुर इनकी उम्र लम्बी करना, इन्हे सदैव खुश रखना।
छात्र-छात्राओं को पढ़ाते समय इस तरह अप्रिय लगनेवाली मधुर स्वर मेढक की टर्राहट की तरह लगी और सारे छात्र अपनी पढाई रोककर गृहस्वामिनी की ओर देखने लगे तथा बड़ी तन्मयता के साथ गृहस्वामिनी के काव्यपाठ सुनने लगे। शिक्षक महाशय का मिजाज बिगड़ जाता है। इसलिए पत्नी के टेपरिकार्डर को रोकने हेतु टोकते हैं- अच्छा,बहुत हो गया। अब चुप हो जाओ। इतना कहना था कि बर्रे की छत्ते पर ढेला जा लगा।
-मुझे चुप होने के लिए कहते हो.....।शर्म नहीं आती है तुम्हे जब पाड़ा के लोगों को कोई फार्म या आवेदन लिखवाना है तो दौड़ेंगे मास्टरमशाय के पास और इस प्राकृतिक दुर्योग में मास्टरमशाय के साथ भेद! इस पाड़ा में सबको अपनी सामर्थ्य के अनुरूप मदद करते रहते हो पर आज तुम्हारी कोई खबर लेने भी नहीं आया। सारे बेईमान हैं,विश्वासघातक हैं।
शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि वर्तमान समय में चोर को चोर कहना उसका अपमान है। फौरन हीं पड़ोसवाली औरते कमर कसे आ धमकेगी और महाभारत शुरु हो जायेगा। इसलिए थोड़ा उग्र होकर बोले-तुमको इतना बक-बक करने की क्या आवश्यकता है,किसी ने खबर नहीं ली –खबर नहीं ली।
-तुम चूप रहो।मुझे समझाने की कोशीश मत करो। मैं किसी से डरती नहीं। मेरे पेट में भूख लगी हो और थाली में परोसी गई भोजन देखकर भी भद्रता दिखाती फिरूं।तुम्हारे इसी कमीनी भद्रता ने आज तक तुम्हे रोजगार का अवसर प्रदान नहीं किया। पेट-संसार चलाने के लिए कोढ़िए का पेशा अपना लिया।यहाँ गार्जीयन केवल मजदूरी करके रोज साढ़े चार सौ रूपये कमा लेते हैं। घर में दोनो बेला मांस-मछली खाते हैं पर बच्चे की ट्यूशन फीस देते समय मैं गरीब हूं,जन-मजदूरी करता हूं,कहाँ से पढ़ाई का खर्च चलाउँ का गीत गाते हैं।(आवेश में चीख-चीख कर बोलने लगती है) मास्टरमशाय का पारा भी गरम होते जा रहा था पत्नी के कटु व्यंग्य वाणों से।
-अरे तुम इन लोगों को क्यों कोस रही हो।वो तो पार्टीवालों ने ऐसा किया है।
-पार्टीवाले कौन हैं........इसका-इसका बाप,उसकी-उसकी माँ(छात्र-छात्राओं की ओर अँगुली दिखाते हुए बोली)झण्डा लिए घुमते हैं,मीटिंगों में जाते है।पार्टी की ओर से मिलनेवाला सुविधा का जमकर फायदा उठाते हैं।धन्य है इण्डिया की व्यवस्था।एकतरफ एस.सी.-एस.टी. सर्टीफिकेट भी ले लिए ताकि आरक्षण का लाभ मिले। इनके घरों में एसी लगे हैं,फ्रीज हैं,स्कूल-कॉलेज में इनके बच्चे स्टाइपेन्ड भी पाते हैं फिर भी य़े श्रमिक-मजूर कहलाते हैं। स्वार्थी भावनाओं से भरे लोग हीं छोटी जात के कहलाते हैं।क्रोधित हो गये शिक्षक महाशय।एक तरफ पढ़ाना थम गया, दूसरी तरफ पड़ोसवाले नेताओं के सामने प्रिय बनने के लिए चुगली कर आयेंगे और नेताओं को सत्य के प्रमाणों को देखने से कोई मतलब नहीं है। फौरन हीं भेजेंगे देश का कल्यान करनेवालों कों बुलाकर लाने के लिए एवं ये कल्यानकर्ता गन्दे-गन्दे शब्दों से सम्मानित करेंगे,घर का तोड़-फोड़ करेंगे,महिलओं के उपर निपीड़न का इतिहास लिखेंगे,मार-पिटकर धमकियाँ देंगे कि भविष्य में ऐसा दूवारा न हो। गुस्से से चेहरा तमतमा उठा।
-तुम क्या चाहती हो,मैं भी भिखारी बनकर इनके पास जाउँ और कहूं मुझे पॉलिथीन की सीट भिख में दो। मैं बेकार हूं-गरीब हूं। मुझे कष्टों में दिन गुजारना मंजूर है पर नेता के रूप मे गुण्डों के सामने गिड़-गिड़ाना स्वीकार नहीं है।मेरे हाथ-पैर सही-सलामत है,पॉलीथिन सीट क्या पुरी एस्वेस्टस् सीट हीं बदल डालुंगा।
-उंह...बदल डालुंगा....(पति की नकल करती है),तुम रखो अपना जाति का अहं। पर मैं नहीं छोड़नेवाली।आयेंगे नहीं वोटरस्लिप देने तब पुछुंगी उनसे।क्यों आये हैं मेरे दरवाजे पर? उस समय यदि तुमने मुझे रोका तो फिर एक दिन तुम्हारे या मेरा।
मास्टरमशाय को क्रोध से काँपते हुए देख बच्चे भयभीत हो गये।वह अभिभाविका भी असमंजस में पड़ जाती है। उसे पश्चाताप होता है। क्या जरूरत थी पार्टीवालों की सहायता की बात छेड़ने की।इसलिए पति-पत्नी के बीच होनेवाली विवाद को रोकने के लिए दोनो से हीं बार-बार अनुरोध करती है कि दीदी शांत हो जाओ,दादा जाने भी दीजिए। दूसरे कमरे में मास्टरमशाय की एकमात्र ग्रेजुएट पुत्री से भी माँ का चीखना-चिल्लाना असह्य हो गया। इसलिए कमरे से बाहर निकल कर माता-पिता दोनों को डाँटती है-ये आपलोग क्या कर रहे हैं?बच्चे पढ़ने के लिए बैठे हैं और आपलोग अभद्रों की भाँति आपस में झगड़ रहे हैं। पुत्री के डाँट का फौरन असर होता है पिता पर जो शांत होकर पुन: पढ़ाने में व्यस्त।परंतु पढ़ाने मे मन नहीं बैठता है। पत्नी के स्वभाव से भलीभाँति परिचीत है। उसके स्वभाव में हीं है सत्य की प्रतिष्ठा करना।स्वयं न कोई गलत कार्य करेगी और न हीं औरों से वैसा अपेक्षा रखती है। चरित्रहीनता चाहे स्त्री का हो पुरुष का हो एकदम पसन्द नहीं करती है। सभी को अपने-अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। पर आज के समय में समाज का बदलता स्वरूप सारे लोग चलनी बनकर सूप में छिद्र देखते फिरते हैं और ज्ञानवाणी का प्रकाश फैलाते नजर आते हैं। 
जैसे-जैसे मतदान का दिन पास आता जा रहा है,वैसे-वैसे चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के शक्ती प्रदर्शन अपनी चरम सिमा पर पहुँचती जा रही है परन्तु आवहवा दफ्तर काल बैशाखी या बारिश की आगाम सूचना की नकारात्मक ग्राफ दिखा रही है। तापमान चालिस डिग्री के आस-पास पहुँच चुकी है।प्रतिदिन दस बजते-बजते सड़कों पर पथाचारियों को सांप सूंघ जा रही है। लेकिन मोटर बाईकों की संख्या इतनी अधिक बढ़ती जा रही है कि बाईकरों में ट्राफिक के नियमों को टोपी पहनाने की होड़ मची है, जैसे भी हो थोड़ी सी फाँक मिली की सड़कों पर फुर्र-फुर्र करते केवल बाईक हीं बाईक नजर आता है। प्रत्येक बाईक पर तीन-तीन युवाओं की सवारी।सारे सवारों की अजीबोंगरीब पोशाक-ब्लाउज की तरह शर्ट,आधी नितम्ब प्रदर्शित करते पतलून और आँखों में ऊल्लू की तरह दिखनेवाला चश्मा जिसके अन्दर से झाँकती नारियों के प्रति अशालिन आचरण करने को बेताब उन्मादी दृष्टि। महिला बाईकरों की संख्या में भी अचानक वृद्धि भी इन युवाओं को प्रोत्साहित कर रहा है। बाईकरों की एक और उच्श्रृंख्लता का ग्राफ तीव्र गति से आसमान छूने लगा है जो मुँह को रुमाल से ढंके रास्ते पर धूल उड़ाते हैं। इन्हे देखकर लगता है चारो ओर आतंकवादियों का साम्राज्य है और असली आतंकवादी की पहचान करना सात जनम में भी संभव नहीं है। पता नहीं इण्डिया को गरीब देश कहने का आधार क्या रखी गई है? जहाँ लगभग लाख रुपये की बाईक,उँचे दर पर बिकती पेट्रोल तथा मेनटेन्स के लिए कम से कम दो हजार रुपये और पॉकेट खर्च के लिय़े हजार रुपये देकर माँ-बाप के द्वारा बेटों को खुली सांड की तरह मस्ती करने के लिए छोड़े जाते हो उस देश को कैसे गरीब कहा जाता है? इनके साथ कदम से कदम मिला रही हैं घनी जनसंख्यावाले सड़कों पर दौड़ती हाई पीक-अप की चार चक्केवाली छोटी-छोटी मारूती,टाटा नैनो,सुमो,स्कार्पिऑन गाड़ियाँ। आज ये ही यान-वाहन नेताओं के शान-बान हैं। जिसकी चुनावी रैली में जितना अधिक बाईकर होंगे वह उतना हीं बड़ा नेता बनेगा और नेताओं का रोड शो सफल कहलाएगा। इसलिए प्रत्येक चुनावी रैली में एक-एक बाईक पर जब तीन-तीन की संख्या में आँखों में रंगीन चश्मे,अर्धनग्न शरीर एवं मुख के अन्दर गुटखा चुघलाते,वोट दो-वोट दो के नारे लगाते हुए जब गुजरते हैं तो रास्ते के किनारे खड़े लोग स्वयं हीं रास्ता बना देते हैं। चुनाव का ज्वार को उँचा बनाये रखने के लिए सभी राजनैतिक दलों के हाईकमान ने शायद आदेश दिया है कि पार्टी कार्यालये के सामने सदैव चालिस-पचास की संख्या में बाईकरों की संख्या दिखनी चाहिए। मतदान में एक सप्ताह बाकी रह गया है।
ट्यूशन में छुट्टी थी।मास्टरमशाय भी खाली बैठे जम्हाई दर जम्हाई ले रहे हैं। गर्मी की उमस ने दोपहर को सोने का मौका नहीं दिया। पसीने से सारा शरीर चट-चट कर रहा है।शाम होने के करीब पहुँच चुका है। हल्की-हल्की हवा के झोंके चल रहे हैं, इससे थोड़ी राहत का अनुभव हो रहा है। इस राहत का सुख पाने के लिए मास्टरमशाय दरवाजे पर बनी सिढ़ियों के साथ निर्मित बैठने की धापी पर आसन जमाए हुए हैं और गृहस्वामिनी अन्दर कमरे में पोंछा लगा रही है। समाज में न स्त्रियों की न जाने कितनी श्रेणियाँ है,अभी तक मनोवैज्ञानिक अनुसंधान में लगे हैं। आमतौर पर दो श्रेणियों की प्रधानता है-एक टांग पर टांग चढ़ाये आराम करने का रास्ता ढुंढनेवाली एवं दूसरी सुबह से लेकर रात बिस्तर पर जाने के पूर्व तक किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहनेवाली। भगवान हीं जाने इन्हे कार्य करते रहने की उर्जा कहाँ से मिलती है? मास्टरमशाय की पत्नी दूसरी श्रेणी की हीं सदस्या हैं। तभी तो उनकी जुवां भी कैंची की तरह चलती है, एकदम कर्कश स्वर में। संयोग हीं कहा जायेगा, आज शासक पक्ष के राजनैतिक स्थानीय कार्यकर्ता शिवनाथ,अमर एवं उनकी नेताईन पुरे दल-बल के साथ वोटर स्लीप देने के लिए आ धमके।
-नमस्कार दादा। शिवनाथ अभिवादन किया और मास्टरमशाय के बगल में हीं बैठ गया। अमर वहीं बगल में खड़ा रहा और नेताइन सामने वोटरस्लिप का बण्डल हाथ में लिए खड़ी एवं बाकी सन्डे-मुन्डे सबको घेरे हुए। नेताइन की उम्र लगभग पैंतीस,मॉडर्न इण्डियन नारी की प्रतिमूर्ती। चूड़ीदार सूट,सिने पर मातृत्व का आवरण गायब।विवाहित या अविवाहित पता हीं नहीं चलता है तथा उनके साथ आये दलीय कर्मी(पुरुष-स्त्री)हीं उनके शरीर को माप रहे हैं।लेकिन नेताइन सब समझ रही है फिर भी डोन्ट केयर का अभिनय कर रही है। गृहस्वामिनी आये हुए लोगों को देखकर कहें या परिस्थितीवश पोछा लगाते-लगाते सामने आ धमकी। शिवनाथ नेताइन को मास्टरमशाय के नामका वोटर संख्या बताता है और नेताइन स्लिपबण्डल से तीन स्लिप निकालकर शिवनाथ के हाथ में थमाती है। शिवनाथ वोटरस्लिप मास्टरमशाय की ओर बढ़ाया हीं था कि गृहस्वामिनी एकाएक बम विस्फोट करती है –अच्छा,आपलोग अभी क्यों आये हैं मेरे दरवाजे पर,क्या केवल भोट लेने के लिए?
-क्यों बौदी(भाभी),ऐसा क्यों कह रही हैं? शिवनाथ प्रति प्रश्न करता है।
-और नहीं तो क्या,ओलों की बारीश तो सबके घर को चिन्हीत करके आती है न। गृहस्वामिनी अपनी रौ में बोल गई।
शिवनाथ पाड़ा में छोटा नेता से बड़ा नेता बनने की तैयारी कर रहा है। इसलिये गृहस्वमिनी का इस प्रकार से झुंझलाकर बोलना अच्छा नहीं लगता है।
-आप कहना क्या चाहती हो?थोड़ा स्पस्ट करके बोलें तो अच्छा रहेगा।
-मैं स्पस्ट हीं कह रही हूं,कुछ छिपाकर नहीं। समझे न।ओलों की बारीश में मेरा नुकसान नहीं हुआ जो आपलोग यहाँ सबके घर आकर नुकसान का जायजा लिया एवं त्राण सामग्री पहुँचाई। क्या हमलोग इस देश के नागरीक नहीं हैं जो मेरे साथ भेदभाव कर कोई झाँकि मारने तक नहीं आया......(बीच में हीं शिवनाथ आग उगल रही बातों को काटता है और तैश में आकर बोलना आरम्भ करता है)।
-ऐसी बात तो नहीं है जो आप इतना पारा गरम कर रही हैं,चीख-चीख कर ढोल पीट रही हैं। यहाँ हम सबके घरों को खोज-खबर लिया है।शायद आपलोग घर में नहीं थी।.....शिवनाथ को वाक्यों मे क्रोध एवं दंभ का मिश्रीत भाव उभर आया।
-आपलोग क्या कह रहे हैं,हमलोग घर से कभी बाहर गये हीं नहीं,यहाँ तक की बर-बाजार तो आपके दादा हीं जाते हैं,मैं तो घर पर हीं थी,कोई मेरा घर देखने आयेगा और मैं हीं न जान पाई। मुझे पागल कुत्ते ने काटा है जो आपलोगों को खरी-खोटी सुनाती फिरूं।
-ये झूठ बोल रही हैं और बीना मतलब का तर्क कर रही है। अमर, शिवनाथ से भी पुराना पार्टी कर्मी। वह पीछे कैसे रहता। उसका मुख खुजला रहा था। इसलिये बीच में वह टपक पड़ा।
-मैं झूठ बोल रही हूं। अरे आपलोग झूठे हैं। जब भोट का समय आता है तो हाथ जोड़े दर्शन और बाद में गायब। पक्के स्वार्थी। यहाँ आये और जिसके साथ आपका स्वार्थ दिखा, उसी के पास गये। यही है आप राजनीति करनेवालों की पहचान। गृहस्वामिनी भला अमर से क्यों पीछे रहती, उसे तो अपने मन का भड़ास निकालने का सबसे उत्तम सुयोग मिला। नेताइन इतनी देर तक अचम्भीत थी पर अब वह भी मैदान मे कूद पड़ी क्योंकि पार्टी की इज्जत का सवाल है।
-यह कैसी औरत है,घर में पति है जो कुछ बोल हीं नहीं रहा है और यह बड़ा कर्र-कर्र कर रही है। लगता है माँ-बाप ने बोलना नहीं सिखाया है ,मूरख कहीं की। जरूर यह परिवार विरोधी दल का समर्थक है तभी तो हमलोग से कुतिया की तरह व्यवहार कर रही है। ठीक है,जरूरत नहीं पड़ेगी हमारे पास आने का तब पुछेंगे। उस समय इसका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा।
क्या बोली ? कुतिया होगी तू और तेरे ये चमचे लोग। अरे, मैं तो तुम लोगों से घृणा करती हूं। नेताइन द्वारा कुतिया शब्द का प्रयोग करने से मास्टरमशाय भी क्रोधित हो गये।
-ओ मैडम जी जरा जुवां पर लगाम देना सिखो। एक तो मेरे दरवाजे पर आई हो औरे हमे हीं गाली दे रही है। वाह मान लिया ! आपहीं में सच्चे नेता के गुण हैं। मास्टरमशाय को बोलते देख शिवनाथ आपे से बाहर।
-अरे ओ मास्टर अपनी पत्नी को मना कर दो,परिणाम अच्छा नहीं होगा। मान लिया हमलोग नहीं आये आपके पास तो क्या आपलोग आये थे हमारे पास? यदि उस समय हम आपकी मदद नहीं करते तब हम दोषी कहलाते।
-हम क्यों जायेंगे,हमे मदद की आवश्यकता नहीं थी फर मानवता क्या कहती है?कम से कम हमारी खबर तो लिये होते।
-इतना अहंकार है तो चिल्ला क्यों रही है। तुम्हारी इतनी हिम्मत मेरे सामने चिल्लाती है, क्या समझती है अपने आपको।देख लूंगा तुम्हे।
-क्यों शिवनाथ बाबु हमलोगों ने हाथ मे चूड़ियाँ पहन रखी है जो धमकि दे रहे हो। मास्टरमशाय भी तन गये। इसके उपरांत पत्नी को डांटते हुए बोले-अरे अब तो शांत हो जाओ। फिर शिवनाथ से बोले-अरे भाई शिव,तुमलोग ठहरे राजनैतिक कर्मी। तुम्हे धैर्य नहीं खोना चाहिए। नागरिको के अभियोगों को तुम्हे हीं सुनना पड़ेगा।इतनी जल्द अपने अहंकार को प्रकट करने लगोगे तो आनेवाले समय के नेता नहीं बन सकते हो।
परन्तु इस ज्ञानवाणी का शिवनाथ या उसकी पत्नी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। दोनों हीं अपनी-अपनी बातों को उगलते रहे। पत्नी कह रही है-तुम क्या बाघ हो जो तुमसे डरकर रहूं।
दूसरी ओर शिवनाथ कहता है-बहुत जल्दी मौका आयेगा। मजा चखाउंगा। नेताइन से भी रहा नहीं जाता है और बोलती है-हरामी औरत,हम लोगों को राजनीति सिखा रही है। ऐसा सबक सिखायेंगे कि जीवन भर याद रखेगी।चलो-चलो।उठो यहाँ से,इतना अपमान आज ता किसी ने नहीं किया है।
शिवनाथ का हाथ पकड़कर खिंचती हुई तथा अमर एवं अन्य साथ आये हुए समर्थकों के धकेलते हुए आगे बढ़ जाती है पर शिवनाथ का झाल मिटा नहीं था। वह नेताइन के साथ आगे बढ़ तो गया पर उसका भौंकना थमा नहीं। उसके भौंकने की आवाज सुनकर पास-पड़ोस के लोग अपने घरों से बाहर निकल आते हैं और तमाशा देखने लगते हैं। शिवनाथ कह रहा था-आज तक इस पाड़ा का कोई भी व्यक्ति मेरे दरवाजे पर गया हो,किसी को मैंने खाली हाथ लौटाया नहीं,अरे मेरे बिना इस पाड़ा की उन्नति कभी नहीं होगा। यहाँ के लोगों को मेरे पास सर झुकाये आना हीं होगा। मामुली सा यह् मास्टर और इसकी पत्नी अपने को बड़ा नेता समझ लिया है।
तमाशाईयों में से एक-दो ने शिवनाथ को मनाने के लिये अनुरोध किया-जाने दो शिव, ये लोग तेम्हारा अपमान नहीं किये हैं। अरे दो बात इन्होने कह दिया और तुम बूरा मान गये ।ये लोग मन के बड़े अच्छे हैं। आज हमारे बच्चे इन्ही के बदौलत स्कूल में पढ़ रहे हैं। पता नहीं इन बातों में कौन सा मंत्र था जो शिवनाथ का क्रोध शांत हो गया। लेकिन जाते-जाते धमकी दे गया-मास्टरमशाय,यदि मैंने इसका शोध नहीं चुकाया तो मेरा नाम शिवनाथ नहीं।
शिवनाथ के वहाँ से जाते हीं पाड़ा के लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई और शिवनाथ के नेतागिरी पर उँगलियाँ उठाने लगे और मास्टरमशाय की पत्नी की बातों का समर्थन करते हुए शिवनाथ का विरोध प्रकट करने लगे।
-छी,छी। शिवनाथ हीं हम सबका त्राणकर्ता बन गया है,नेता बन गया है। चरित्रहीन,कायर, बेईमान है बेईमान।अपने दोस्त के पत्नी के साथ रात कटाता है,जमीन की दलाली करता है।
-और तो और इस अमर को नहीं देखते हो।घर में पत्नी है फिर भी शिवनाथ की दीदी के साथ कई बार पकड़ा जा चुका है।
-पाड़ा का लड़का होकर भी इसने हमारी जमीन हमसे छिनवाकर कुछ रुपयों के लिए प्रोमोटर को दे दिया।
-इस नेताइन को देखते नहीं,न जाने कितने नेताओं का बिस्तर गरम कर की फिर भी काउन्सिलर का भोट हार गई।
-अरे भाई ,राजनीति करनेवाले गिरगिट होते हैं। पिछली बार जब भोट हुई तो यही शिवनाथ इसी नेताइन को बाजारु स्त्री कहा था और आज इसी नेताईन के साथ भोट में घुम रहा है।
-लेकिन दीदीमनी को इतना रूखे स्वर में नहीं कहना चाहिए था। ये राजनीति करने वाले किसी का भला करें या न करे पर नुकसान पहुँचाने में उस्ताद होते हैं।
-हाँ,हाँ। दीदीमनी को भी थोड़ा समझ-बूझ कर बोलना चाहिए था।
सभी अपने-अपने ढंग से अपनी रायों को प्रकट कर रहे थे पर मास्टरमशाय कुछ और सोच रहे थे तथा उनकी पत्नी नीरव। सामने खड़े लोगों में से एक वृद्धा कहती है –जाओ बहु, अपना काम करो और हाँ थोड़ी सावधान रहना। मैं इन दोनों शिव-अमर एवं इनके खानदान को अच्छी तरह से जानती हूं,इन्होने कभी किसी का भला नहीं किया है।इसके बाद मास्टरमशाय सबसे चले जाने का अनुरोध करते हैं। सबलोग चले गये।विक्षुव्ध मास्टरमशाय पत्नी पर क्षोभ प्रकट करते हैं,
-हो गई न मन की शांति। इसीलिए मैंने कई दिन पूर्व मना किया था। बड़ी चली थी स्पस्ट वक्ता बनने......
-तुम चुप रहो। मैं जो बोली वही सही है। गृहस्वामिनी भड़क गई।
-मैं कहाँ कह रहा हूं कि तुम गलत बोली हो। मास्टरमशाय का वाक्य अभी पुरा भी नहीं हुआ था कि गृहस्वामिनी पति के कथनों को व्यंग्य समझकर बीच में हीं काट दी।
-तो तुमने मुझे रोका क्यों नहीं।
-अरे तुम,अपने सामने किसी को बोलने दोगी तब न।वो लोग भी कुछ कहना चाह रहे थे पर तुमको तो ज्यादा बोलने का रोग है। भला सामनेवालों को क्योंकर बोलने दोगी।
-ठीक की हूं।क्यों तुम्हे डर लगता है न, मैं डरनेवाली नहीं।
-यहाँ डरने की बात नहीं है। मेरा बना बनाया काम बिगड़ जायेगा अब।......इतनी देर तक उनकी पुत्री कमरे के अन्दर से सब सुन रही थी,वह जानती थी कि उसकी माँ बोलने के मामले में किसी के आगे झुकती नहीं है। इसलिए वह बोली,
-माँ , अभी भी तुम्हारा मन नहीं भरा है।
-क्यों, तू कहना क्या चाहती है।
-माँ तुम्हे विरोध करना हीं था तो थोड़ टोन बदलकर बोलती। जानती हीं हो अभी इनलोगों का शासन है और इस गलीवाले रास्ते को सैंक्शन कराने के लिए बाबा को कितना पापड़ बेलना पड़ा है। ये लोग ,देख लेना अब रास्ता बनने हीं नहीं देंगे।
-नहीं बनने देंगे। न बनने दें। मैं सर नहीं झूकानवाली। तुम दोनों बाप-बेटी केवल मूझे हीं दबाते रहती है,अरे हिम्मत है तो ऐसा करनेवालों को रोककर तो दिखाओ।लानत है तुमलोगों पर।
बाप-बेटी दोनों निरूत्तर। गृहस्वामनी अपने कामों में व्यस्त हो गई पर उसके काम करने की गति देखकर कोई भी समझ सकता है कि क्रोधावेग कमा नहीं है। दूसरी तरफ वापस गये राजनैतिक कर्मी का दल मास्टरमशाय के मकान के बाँये तरफवाली रास्ते की ओर आ चूके थे। शिवनाथ, अमर एवं नेताईन तीनों के पेट का भात हजम नहीं हुआ था। बड़ी-बड़ी डकारें ले रहे थे। इनकी डकारने की आवाज मास्टरमशाय के कानों मे प्रवेश कर रही थी। कमरे के अन्दर खिड़की के पास खड़े होकर सुनाई देनेवाली डकार का थाह लेने प्रयास कर रहे थे कि गाड़ी किस ओर जा रही है?
शिवनाथ कह रहा था-अरे,मैंने तो मास्टरमशाय को भद्र व्यक्ति समझकर ही इस रास्ते को सैंक्शन कराने की सुपारीश की थी।
नेताईन बोली-तुमलोगों ने कहा कि यह हमारा समर्थक है पर यह तो एकदम उल्टा निकला। यदि ऐसा पहले से जान गई होती न तो नई वाटर सप्लाई का कनेक्शन जोड़ने हीं नहीं देती।  यह मास्टर तो खुद हीं पत्नी से डरता है,दूसरा कोई होता तो एक हीं थप्पड़ में पत्नी का मुँह बन्द कर देता।मागी मानुषों को ज्यादा जुबान नहीं लड़ाना चाहिए। हालाँकि मैं भी मागी मानुष हूं फिर भी यह स्साल.....बहुत ढेमनी है।
अमर कहता है-क्या पता, क्यों आज ऐसा बोल गई। इस फैमिली को मैं बीस वर्षों से देख रहा हूं, कभी भी किसी से ऐसा व्यवहार.....
शिवनाथ उसकी बात को काटकर कहता है-तू चूप रह अमर। सब तेरी वजह से हुआ,तुम्हारे कहने पर कि मास्टरमशाय के घर के तरफ का रास्ता ठीक कराना होगा,मैंने इस छोटे तालाब के किनारे एक गार्डवॉल बनाने की प्लान को वार्ड कमिटि से पास करवाया। जानते हो केवल इस मास्टर के बच्चे का मुँह देखकर। पर यह पक्का बेईमान निकला।
नेताईन सबको चुप करने के लिये बोली-अब तुम लोग चूप भी रहो। इस मास्टरनी का रस तो निकाल कर हीं रहूंगी।
धिरे-धिरे उनकी आवाज गली से पतली होने लगी। उपरोक्त संभाषण गृहस्वामिनी भी सुन रही थी और उसका आवेग भी शांत हो चूका था। वह अपनी पुत्री से बोलती है,
-देख रही है ना मा। तेरे बाबा ठीक हीं बोलते हैं कि नारियाँ हीं नारियों की शत्रु होती है। यह नेताईन कैसे गन्दे शब्दों का प्रयोग करती है वह भी पुरुषों के सामने। क्या यही है आधुनिक इण्डिया की नारी! ऐसी नारियाँ तो देश-समाज को बिगाड़ कर रख देगी।
परन्तु मास्टरमशाय शांत होकर निर्विकार भाव से खिड़की के पास खड़ा रहा।
जैसे-जैसे भोटदान का समय नजदिक आता जा रहा है,समाचार पत्रों में-टी.वी. पर राजनैतिक क्लेशों के भयंकर चित्र लगातार उकेरे जा रहे हैं। एक दल के द्वारा दूसरे दल के समर्थकों को या पुरा का पुरा पाड़ा को भोट से विरत रहने के लिये डराना, धमकाना, घरों में आग लगा देना,पुरुषों को बाँधकर या किसी भी अस्त्र की नोक पर नारियों पर अत्याचार एवं बलात्कार कर दहशत फैलाना आम बात हो गई थी। राजनैतिक कार्यकर्ताओं की हत्या करना तथा उस हत्याकांड पर सड़क,रेल अवरोध करना,बाजार बन्द कर दुकानदारों को पीटना, दुकानों में तोड़-फोड़ करना तथा आगजनी के साथ लूटपाट करने ऐसा पुण्य का कार्य बन चूका है। नेताओं ने  राजनैतिक सौजन्यता को तो आजीवन कारावास दिलवा दिया है और एक-दूसरे के व्यक्तिगत जीवन के पहलूओं को सार्वजनिक कर कीचड़ उछालने मे गर्व का अनुभव करने लगे हैं। वर्तमान समय में देश में शिक्षितों की संख्या में काफी वृद्धि हे चूकी है फिर भी देश को वर्गभेद का शिकार बनाया जा रहा है,तभी तो योग्यता को महत्वहीन कर एस.सी./एस.टी./ओ.बी.सी. तथा माइनोरिटी को बढ़ावा देने की वकालत हो रही है। धार्मिक स्वाधिनता के नाम पर किसी एक धर्म को स्वयं नेतागण हीं संरक्षण दे रहे हैं ताकि एक विशेष वर्ग का भोटबैंक पर अधिकार कर पहले अपनी जीत तो पक्की कर लूं, बाकि को देख लेंगे। इससे हर घर के लोग सशंकित हैं।क्या पता किसके घर में कौन सा दल-बल कब आ धमकेंगे?क्योंकि ये लोग होश में नहीं रहते हैं। मन मे राजनैतिक क्षमता का दंभ तथा तन में शराब का नशा,दोनों मिलकर हिंसा और वासना को जन्म देते हैं एवं चारो मिलकर पड़ोसी को हीं पड़ोस का शत्रु बना देता है।इतना सब कुछ होने के बाद भी आतंक और अशांति से त्रस्त नागरिकों में मतदान करने के उत्साह में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि इस उत्साह के प्रेरणा प्रदान कर रहा है रेडियो,टी.वी.,समाचार पत्रों द्वारा प्रचार कार्य “मतदान करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य है। इस अधिकार एवं कर्तव्य के द्वारा राष्ट्र विकास कि गति को प्राप्त करेगा।“अत: नागरिकगण अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने को उतावले हैं। लेकिन इन प्रचारकों का भी कर्तव्य बनता है नागरिकों के लिए आतंक मुक्त वातावरण का निर्माण कराना पर इन्हे तो फोटो खींचने और खींचवाने से फुर्सत मिले तब न? कथनी और करनी में अन्तर होता है।
मतदान अभी भी निर्धारित समय से दस घंटे पीछे है।रात नौ बज रहे होंगे। दिन भर का थका-माँदा श्रमिकों में अधिकांश चुल्लू पी-पीकर अपने-आप में मस्त थे। सड़कों एवं गलियों पर जहाँ-तहाँ ये चुल्लूखोर बवालीगिरि कर रहे थे। युवकों का समूह कौन,कितना अधिक बोतल खाली कर सकता है कि प्रतियोगिता में मशगुल सिगरेट फूंक-फूंककर गोल-गोल छल्ले मुँह से निकाल रहे हैं और हवा में मार्शल आर्ट की पैंतरेबाजी कर रहे है। जीमों में जाकर कैसा बॉडी बनायेंगे ताकि दुनियाँ की सारी लड़कियों के आकर्षण का केन्द्र वही बने रहे की आलोचना में व्यस्त हैं। ऐसी हीं व्यस्तता पार्टी कार्यालयों में भी चल रही है। सारा का सारा मत उन्ही के पॉकेट में आये, इसी की तैयारी एवं योजनाको कार्य का रुप देने के लिए सेनाध्यक्षों को सैनिकों के साथ युद्धक्षेत्र में कूच करने का आदेश दिया गया। राजनैतिक सैनिकों का झूण्ड निहत्थे-डरे-सहमें नागरिकों के घरों को अपना निशाना बनाकर त्रास का साम्राज्य विस्तार कर रहे थे। इस युद्ध की भयावहता को देखकर चन्द्रमा भी आकाश में लज्जा से मुँह छिपा लिया। चारो तरफ अन्धेरी काली चादर बिछी हुई थी,सड़कों पर वैद्युतिन बॉल्व पीली-पीली प्रकाश बिखेरे सबको ऐसा दांत दिखा रहा था कि सामने खड़ा व्यक्ति ठीक से दिखाई भी नहीं देते है।
मास्टरमशाय घर पर नहीं थे। घर में गृहस्वामिनी एवं पुत्री।अचानक दरवाजे के बाहर कई कदमों के आहट सुनाई देती है। माँ-बेटी सशंकित हो उठी। बाहर के सन्नाटों के कारण आगन्तुकों की सांसों की ध्वनि कमरे के अन्दर प्रवेश कर रही है। कान दरवाजे की ओर। दरवाजे पर खट-खट की आघात। गृहस्वामिनी के हृदय की धड़कन बढ़ गई, चेहरे पर अन्जानी अनहोनी कुछ घटनेवाली है का अहसास हो रहा है। पुन: खट-खट। पुत्री को अन्दर दूसरे कमरे में जाने का संकेत कर पुछी-कौन?
-बौदी हमलोग। बाहर से प्रत्युत्तर।
-हमलोग,मतलब? गृहस्वामिनी दरवाजा नहीं खोलती है।
-मतलब। मतलब यही है बौदी की आगामीकाल इस घर का एक भी सदस्य भोट देने न जाय और हाँ मास्टरमशाय को बोल दोगी कि जब तक भोट समाप्त न हो जाय वह घर से कदम बाहर न निकाले अन्यथा उनका घुटना खोलकर उनके हाथों मे पकड़ा देंगे।
सारे शब्दों के चबा-चबाकर वक्ता प्रयोग करता है। गृहस्वामिनी को चार सौ चालिस भोल्ट का झटका लगता है।कहीं गिर न पड़े,दीवार का सहारा लेती है। एक तो दिनभर की तपन से बेचैन उसपर ऐसी धमकी। सारा शरीर में एक प्रकार की अस्वाभाविकता होने लगती है। सर पकड़ कर वहीं बैठ जाती है। पुत्री बाहर आ जाती है। माँ को थपकी देकर कहती है- माँ घबड़ाओ मत। हम भोट देने नहीं जायेंगे। पुत्री को चूप रहने का संकेत करती है।कान अभी भी बाहर दरवाजे पर लगी है,वापस जाते हुए कदमों के आहट सुनाई दे रहे हैं और उन वापसी कदमों के साथ ताल मिलाते मुखरविन्द कह रहे थे-यह पुरा गली हीं विरोधियों का है।ऐसा कर देंगे न इन सुअर के बच्चों को, इसकी माँ......सात जनम तक भोट का नाम नहीं लेंगे।
धिरे-धिरे कदमों की आहट पिछे की मकानों की ओर बढ़ने लगी। माँ-बेटी खिड़की के तरफ आ जाती है। जाने वालों की भीड़ दिखाई दी। लगभग संख्या पचास की होगी।ज्यादातर के चेहरे रूमाल,स्कार्फ या गमछा से ढंका एवं हाथों में कटार,पिस्तौल,बमों से सुसज्जीत। ये सशस्त्र आगे-आगे चल रहे थे एवं भीड़ में कुछ चेहरे,हाथ खाली। इन खाली चेहरों को देख मा-बेटी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। क्या ये लोग राजनैतिक कर्मी हो सकते हैं? पहचाने गये चेहरे रामप्रसाद(राजमिस्त्री),प्रणव(प्राईवेटसुरक्षागार्ड),अजय(रिक्शावाला),मनोज(चाट विक्रेता), हरी(लॉरी का खलासी),रवि(मजूरा) के हैं और इन्ही के बच्चे मास्टरमशाय के पास पढ़ने आते हैं। इनके बच्चों को हमलोग कितना प्यार –स्नेह देते हैं!इस घर के स्नेह के बंधन में बंधे बच्चे पढ़ने के समय पुरा हो जाने पर भी घर वापस जाना नहीं चाहते हैं। वाह रे आधूनिक राजनीति! अभिभावकों के विवेक को हीं खा गया। भविष्य को शिक्षित बनाने वाला मानव समाज में सदैव आदरनीय रहा पर आज श्रमिक नेताओं की तर्कशास्त्र ने अध्यापनकार्य को मजदूरी में बदल दिया अर्थात अध्यापक महज आवश्यकता पूर्ति का माध्यम बन गया है। भय एवं आश्चर्य में डूबे माँ-बेटी के पता हीं न चला कि धमकियाँ देनेवाले वापस लौट चूके हैं। उन लोगों की नजर इन पर पड़ती है। उनमें से एक अपने मुँह से स्कार्फ हटा देता है और खिड़की के एकदम पास आकर कहता है- लो हमारा चेहरा पहचान लो अच्छी तरह से पर याद रखना सोलह मई को रीजल्ट घोषणा के साथ हीं साथ पाड़ा में रह पाओगी की नहीं। इतना कहकर आगे बढ़ जाता है। पुन: वैद्युतिन झटका क्योंकि अंतिम धमकी देनेवाला भी इसी घर का छात्र रह चुका है और गृहस्व्मिनी के हाथ की पकी रोटियाँ खाकर हीं जाता था। आज वह बील्डिंग कन्ट्रैक्टर है और दो-तीन वर्षों में हीं गाड़ी-बाड़ी बना लिया है और पाड़ा में भद्र-सचेतन युवक के रुप में जाना जाता है। घृणा से भरी पुत्री खिड़की के बाहर थूकती है-“नमकहराम कहीं का”। थोड़ी देर पश्चात जब माँ-बेटी स्वाभाविक हुई तब माँ पुत्री से कहती है-मा रे,थोड़ा अपने बाबा को फोन कर। देख कहाँ है? ना-ना,मुझे डॉयल करके दे।
मास्टरमशाय इन बातों से अनभिज्ञ सायकल चलाते हुए घर की ओर हीं आ रहे हैं। सड़क की हालत एकदम खराब है। सड़कों पर पौरसभा की ओर से खुदाई का कार्य कभी समाप्त होता हीं नहीं है। जहाँ-तहाँ भराई तो की जा रही है पर सड़क की मरम्मत कब होगी कोई नहीं जानता है। जगह-जगह पर बोर्ड टांग दी गई है-“आज की असुविधा आनेवाला कल की सुविधा,पौरसभा का सहयोग करें”।सड़कों की वर्तमान सुन्दरता में चार-चाँद लगानेवाले गड्ढों में हिचकोले खाता मास्टरमशाय की सायकल भी गर्व से इतरा रही है।भले हीं उसपर सवार श्रीमान की जान निकल जाय। बाईकरों की तेज रफ्तार एवं हैडलाईटों की चुंधिया जानेवाली प्रकाश से पलकें बन्द हो जा रही थी। ऐसे में पॉकेट में सोई मोबाईल जाग उठी। सायकल रोककर मोबाईल के स्क्रिन पर घर का नम्बर देखकर हरा बटन दबा दिया और कान से लगाकर बोले-बोलो क्या बात है? दूसरी तरफ से कान में प्रवेश करनेवाली ध्वनि ने मुखमण्डल का रंग हीं बदल डाला। धड़कने बढ़ गई। एकपल के लिये हाथ-पाँव सुन्न होता हुआ महसुस हुआ। पर घबड़ाने से कुछ नहीं होगा। बाधाओं से लड़कर हीं जी सकते हैं। ठीक है,तुमलोग चिन्ता मत करो। मैं घर से थोड़ी हीं दूरी पर हूं। मोबाईल के लाल बटन को दबा दिया। एक-दो मिनट तक खड़े-खड़े सोचते रहे क्या करना चाहिए। फौरन हीं निश्चय कर लिया कि इसके पिछे कौन हो सकता है? सो उसे हीं पकड़ना होगा। हालाँकि जानते हैं कि इन समाज के दीमकों से बात कर कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि ये दीमक अपनी व्यक्तिगत सुख-आराम को प्राप्त करना हीं देश की सेवा मानते हैं अर्थात हम सुखी रहेंगे तभी तो देश सुखी कहलाएगा। फिर भी इनके सामने विरोध करना आवश्यक है।
सायकल दौड़ पड़ी सीधे शिवनाथ राय के घर की ओर। वह घर पर नहीं था। उसकी बौदी एवं भतीजी आँगन में बैठी थी। आगन्तुक को देखकर एक साथ बोली-कौन?
-बौदी, मैं मास्टरमशाय। शिवनाथ घर पर है क्या?
-कौन,शिवनाथ को घर से गये दो घंटे हो चूके हैं। कोई जरुरत हो तो कहें । उसके वापस आने पर सूचित कर दूंगी।
-ना कोई जरुरत तो नहीं है। बस दो-चार बाते कहनी थी। मास्टरमशाय कुछ सोचकर बोले।
-बोलिए ना। आयेगा तो बता दूंगी उसे। बौदी आग्रहपूर्वक बोली। मास्टरमशाय सोच में पड़ गये बोलें या न बोलें। फिर भी बोलना हीं उचित रहेगा।
-बात है कि मैं तो कभी किसी राजनैतिक दल का झण्डा-डण्डाधारी रहा नहीं और ना हीं कभी किसी मीटिंग या जुलुस में शामिल हुआ तो फिर मेरे घर जाकर भोट नहीं देने के लिए धमकाया क्यों गया?
-क्या कह रहे हैं, आपको धमकाया गया है! भला यह भी कोई बात है। आप ठहरे शिक्षक और एक शिक्षक का सभी राजनैतिक दलों में सम्मानीत स्थान होता है।
-आप सही कह रही हैं बौदी। पर हमें आगामिकाल घर से बाहर न निकलने का फरमान जारी किया गया है।
-इस तरह का फरमान न जाने कितनी बार हमारे घर आ चूका है। डरने की कोई बात नहीं है। कमरे के अन्दर से एक अन्य व्यक्ति कहते हुए बाहर आया। यह शिवनाथ का बड़ा भैया था,जिसके कन्धे पर गमछा और धोती को लूंगी की तरह लपेट रखा था। शरीर पर बिचाली के छोटे-छोटे टुकड़े चिपके हुए हैं। इस व्यक्ति के काया को देखकर हीं  लग रहा था की शायद वह पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था कर रहा था। मास्टरमशाय के पास आकर खड़ा हो सर से पैर तक माप लेता है।
-दादा आपके लिए कोई बात नहीं है। परन्तु मेरे लिए है क्योंकि घर पर युवा पुत्री है। मास्टरमशाय बोले।
-ना,ना। चिन्ता मत करो। किसकी इतनी हिम्मत हो गई है इस तरह शांत निरीह सज्जन शिक्षक को अपमानित करे। आने दीजिए शिवनाथ को। उस व्यक्ति ने कहा।य़ह सुनकर मास्टरमशाय के ओष्ठद्व्य पर मुस्कुराहट खेल गई। यह मुस्कुराहट उस व्यक्ति से छिपा नहीं।
-दादा, इसिलिए तो सीधा शिवनाथ के पास हीं आया। इस कथन से बौदी को कुछ सन्देह होता है। वह पूछती है,
-कौन लोग धमकाने वाले होंगे?
-मुझे नहीं मालुम। मैं घर पर नहीं था। रात्री बेला में ग्रामवासियों के घर पर राजनैतिक दल स्वयं हीं धमकियाँ देने लगे तो राजनीति भी गुण्डागर्दी में बदल जायेगी। ऐसा कर राजनीति कब तक जीवित रह पायेगी?
-ठीक है। मास्टरमशाय , आप डरो मत। मेरी भी एक बेटी है। आपके डर को मैं समझ रही हूं।
-माँ,केवल उनका डर समझने से नहीं होगा और ये कैसे निर्भय रहेंगे। आजकल हम लड़कियों के साथ जो हो रहा है,वह तुमसे छिपा नहीं है। यह उक्ति आँगन में बैठी कॉलेज की छात्रा,शिवनाथ की भतिजी ने प्रकट की। माँ अपनी पुत्री की बातों को गम्भीरतापूर्वक ली। उनके हाथों में मोबाईल थी। किसी का नम्बर डॉयल की और हाथ से मास्टरमशाय को रुकने का इशारा कर आँगन के दूसरे छोर पर चली जाती है।मास्टरमशाय वहीं खड़े रहते हैं।
-आपको क्यों धमकायेंगे,यह बात मेरी समझ में नहीं आया।शिवनाथ का बड़ा भैया पुछा।
-सुनना शायद अच्छा नहीं लगेगा। फिर भी मैं आपको बताउँगा ताकि सबको पता तो चले कि हमलोग किस इण्डिया में रहते हैं जहाँ सत्ता के लालच में पड़ोसी पड़ोसी नहीं रह गया........और पुरी घटना का वर्णन(मास्टरमशाय के साथ शिवनाथ के साथ हुई तर्क-वितर्क)किया। उसके बाद अपना राय भी प्रकट करते हैं,
-अब आपहीं बताओ दादा कि पाड़ा का कार्यकर्ता पाड़ा की खबर नहीं रखेगा तो कौन रखेगा?उसके पास उसका समर्थक एवं विरोधी दोनों हीं जायेगा। ऐसे में शिवनाथ यदि धैर्य खो देगा तो उसकी छवि लोगों की नजर में कैसी तैयार होगी? सामनेवाला व्यक्ति निर्वाक हो सुनता रहा। इतने देर में बौदी भी वापस आ गई और मास्टरमशाय से बोली,
-मास्टरमशाय, आप घबड़ाना मत। मैंने शिवनाथ को फोन पर आपके बारें में सबकुछ बता दी है। उसने कहा है आप कल केवल बूथ पर मत जाना।
-ठीक है बौदी। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। मास्टरमशाय की सायकल उन्हे पीठ पर बिठाकर सड़कों के हिचकोले खिलाने लगी। घर की दूरी सौ गज की रही होगी। अन्धेरे में लोगों की गुनगुनाहट कानों में आती है। अमर का घर एकदम सामने हीं एवं उसके घर के बगल में एक माठ है जहाँ बाइकों की चमक देखने को मिली और उसके साथ हीं साथ चुल्लू और शराब की गंध नथूनों में समा गई। सायकल भी अपने सवार की मनोस्थिती को भाँप कर अपनी गति मन्द कर ली। माठ में गहन अन्धेरा का शासन एवं अन्धेरे के सैनिकगण अपने कार्य के पुरा कर लेने के पश्चात शायद आराम कर रहे हैं। अचानक एक बिजली कौंध जाती है,शायद ये वही लोग हैं जो सबको आगामी सुबह बूथ पर न जाने की धमकियाँ दे रहा है। कमाल है किसी ने प्रतिवाद करने का साहस नहीं दिखाया! दिखायेंगे भी कैसे? इन महानूभावों के डर से पूरा सड़क सुनसान हो चूका है। मास्टरमशाय की सायकल रूकी नहीं। कुछ हीं कदमों की दूरी पर पड़ोसवाला निरंजन मिस्त्री खाली बदन ,बीड़ी के कश लेते चहलकदमी करता हुआ मिला। निरंजन को देखकर सायकल थम गई। अन्धेरी सड़क पर जब दो जीव आमने-सामने हो तो झिंगूरों के कर्णप्रिय संगीतानुष्ठान रात्री के तमस को काफी रहस्यमयी बना देता है।
-कौन,निरंजनदा?
-हाँ। मास्टरमशाय, आप इस समय.....?
-हाँ। मैं एक जरूरी कार्य समाप्त कर लौट रहा था। पर ये लोग कौन हैं?
-नहीं पता। ये लोग बहुत देर से पाड़ा मे दहशत फैला रहे हैं।
-क्या मतलब, और किसी ने जानने का प्रयास भी नहीं किया ये लोग हैं कौन?
-मास्टरमशाय जब घर के सदस्य हीं अपने सगे भाई की हत्या बाहर के लोगों से कराता है तो रक्षा कौन करेगा......? दोनों जीवों के साथ-साथ रात भी गहरी साँसे ले रहा था। निरंजन के बीड़ी के गहरे कश ने एक चिंगारी को भड़काया और वह खांसने लगा। उस खांसी की आवाज छाये हुए सन्नाटे में दानव की अट्टहास की तरह लगती है। सायकल अपने सवार के साथ पैदल हीं घर पर पहुँचता है। दरवाजे पर खड़े होकर मास्टरमशाय बेटु कहकर पुत्री को आवाज दिया।
-घर चले आये हो? गृहस्वामिनी कमरे के अन्दर से हीं पुछती है।
-हाँ।......दरवाजा खुलता है और पुत्री बाहर की ओर चौकन्नी दृष्टि से देखती है। पुछती है,
-बाबा बाहर किसी ने तुम्हे रोका नहीं।
-नहीं तो। मास्टरमशाय अन्दर प्रवेश करते हैं।
-मुझे तो डर लग रहा है।
-इसमें ड़रने की कौन सी बात है।
-बाबा भले आपको डर नहीं लगता हो पर......
पर क्या बेटु, जान लो कि वर्तमान युग के वीर पुरुष घरवालों को हीं न धमकायेंगे।
-वह तो मैं भी समझ गई हूं बाबा । आज कुछ देर पहले जो बहादुरी का दृश्य देखने को मिला है वह गणतंत्र कभी हो हीं नहीं सकता है। देश की राजनीति असमाजीक तत्वों के हाथों पल रही है।
मास्टरमशाय सायकल यथा स्थान रखकर कपड़े बदले तथा हाथ-पाँव धोकर भोजन करने बैठे पर चूप्पी की छाया ने तीनो सदस्ये को अपने गिरफ्त में ले रखा था। मास्टरमशाय के हाँथ-मुँह अपना कार्य अवशय कर रहा था पर मन कहीं और विचरण कर रहा था। विचारों के लहरों में प्रतिवाद की भाषा कौन सी होनी चाहिए इसी पर उठा-पटक हो रही थी। भोजन पश्चात अभ्यासानुरुप दाँतों से टूथब्रश चिपकाये रास्ते पर चहलकदमी करने बाहर निकले तो गृहस्वामिनी बोली- ज्यादा दूर मत जाना।
-नहीं जाउँगा।
एक कदम-दो कदम करके अमर के घर तक पहुँच गये। बगलवाली माठ से राजनैतिक सैनिक  जा चूके थे। परन्तु उनके द्वारा हवा में फैलाई गई चुल्लू एवं शराब की गंध मास्टरमशाय के नथुनों मे प्रवेश कर प्रतिवाद की लहर को शान धरा दी। अमर के दरवाजे पर एक मोटरबाईक खड़ी थी एवं मास्टरमशाय अच्छी तरह से जानते हैं कि शिवनाथ अमर की पत्नी के साथ गप्पे मार रहा होगा। अत: कदम अमर के घर के दरवाजे की तरफ । दरवाजा आधा खुला,अन्दर झाँका । एक किशोर बैठा टी.वी. देख रहा था। यह किशोर मास्टरमशाय के छात्रों में से एक था तथा दादु(नानाजी) कहकर सम्बोधित करता था। मास्टरमशाय को देखकर बड़ा खुश होता है। फौरन ही उठकर बाहर आता है और कहता है-ओ दादु, अन्दर आओ न, टी.वी. पर कार्टून देख रहा हूं । आप भी देखो न।
-नहीं दादा(प्यार से बंगला में नाति-पोतों का सम्बोधन)। तुम अभी भी जाग रहे हो। सुबह कैसे उठोगे।
-ओ दादु, चलो न आप भी हमारे साथ कारटून देखो। जिद्द करता है।
-नहीं दादा।
-कौन है? एक नारी स्वर सुनाई देती है।
-ओ जेठी माँ, देखो दादु आय़े हैं।
प्रश्नकर्ता नारी सामने आई तथा मास्टरमशाय को देखकर चौंकती है। यह नारी अमर की पत्नी थी जिसे अन्दर से शिवनाथ ने हीं मास्टरमशाय के आगमन का हेतु  जानने के लिये  भेजा था। असमय मास्टरमशाय कभी भी अमर के दरवाजे पर नहीं आये हैं,पर आज। लगता है कुछ गड़बड़ हुआ है।
-अरे मास्टरमशाय आप, क्या बात है? सब कुछ ठीकठाक है न।
-यदि सब ठीक होता तो इतनी रात गये मैं आपके दरवाजे पर क्यों आता। खैर ,इसका(किशोर की तरफ इशारा करते हुए कहा)जेठु कब तक घर वापस आ जायेगा।
-अब तक तो आ जाना चाहिए था।शायद किसी जरुरी काम में व्यस्त होंगे। यदि कुछ कहना है तो मुझे बोल सकते हैं। मैं उनसे कह दूंगी,कल सुबह से भोट है न।
-हाँ कहना था बोलकर हीं तो आया हूं। आज बीस वर्ष से ज्यादा हो गये यहाँ आये,कभी किसी ने मेरे घर पर भोट नहीं देने की धमकी नहीं दी।
-धमकी! वह भी आपको। कौन थे वे लोग?
-कौन रहेंगे। बाहरवालों की इतनी हिम्मत कहाँ जो अमर एवं शिवनाथ के रहते पाड़ा में घुसे।
-ओ इतनी सी बात है। हमलोगों को ऐसी धमकियाँ न जाने कितनी बार  मिली है। ऐसी धमकी कोई नई बात नहीं है और न हीं इसमें डरने या घबड़ाने की बात है। बड़ी सहजता से उस भद्र नारी ने उत्तर दी।
-मैं डरता या घबड़ता नहीं यदि मेरी बेटी न होती। इसलिए चिन्तित हूं क्योंकि मैं कोई राजनैतिक दल का सदस्य नहीं हूं जो मेरे परीवार की रक्षा करने सौ लोग तुरन्त खड़े हो जायेंगे।
-मैं आपकी बातों को समझ रही हूं। वो आ जायेंगे तब आपकी बातों को मैं कहूंगी.....। इतना हीं कह पाई थी की बाहर अमर आ पहुँचा और संग हीं संग मास्टरमशाय़ कुछ समझ न पाये इसलिये शिवनाथ घर के पिछले दरवाजे से सामने आया। अमर मास्टरमशाय को इतनी रात अपने घर आये देख थोड़ा अचम्भीत होता है।
-अरे मास्टरमशाय। क्या बात है? अमर पुछा।
-मैं जानता हूं उनका यहाँ आने का कारण क्या है। मास्टरमशाय आप घर चले जाओ। मैं देख लूंगा धमकी देनेवालों को, काफी रात हो चूकी है और अभी भोट की हवा अच्छी नहीं है। अमर के बदले शिवनाथ जबाब देता है।
-तुम शायद ठीक कहते हो शिवनाथ पर अपने इस पाड़ा की अच्छी हवा अचानक बदल कैसे गई और यह कैसी मताधिकार हमलोगों की है जो हमसे छिन ली जा रही है वह भी जबरदस्ती।इस सत्तालिप्सा के संस्कार को बदलना होगा जो भाई को भाई का दुश्मन बना दिया है। एक-एक शब्द को काफी गम्भीरतापूर्वक मास्टरमशाय बोले।
-मास्टरमशाय, यह सब ज्ञान की बात बेकार है। अब हर कोई लोकतांत्रिक शक्ति पाना चाहता है। कृप्या, अब आप घर जाईए। ऱात बारह बजने को है। इस कथन में शातिर शिवनाथ बोल रहा था ये अच्छी तरह से मास्टरमशाय समझ जाते हैं।
-हाँ शिवनाथ मुझे घर तो जाना हीं होगा कारण इस संस्कार को बदलना जो है। मास्टरमशाय वापसी के लिए कदम बढ़ाते हैं।
-मास्टरमशाय, इसमे काफी लम्बा समय लगेगा। पिछे से शिवनाथ की आवाज सुनाई देती है।
-नहीं।देर भले हो पर देश का भला तो अवश्य होगा और मेरा य़ह कार्य मेरे छात्र पुरा करेंगे। मास्टरमशाय के इन शब्दों को शायद अमर या शिवनाथ ने न सुना हो पर बड़ी संदिग्ध दृष्टि से वापस लौटते मास्टरमशाय के पीठ को देखते रहे।
रात का बीत जाना एवं प्रात: का आना जिस प्रकार से निश्चित है उसी प्रकार से निराशा के बीच आशा की लौ हमेशा जलती रहती है और इस लौ की चमक मंद भले हो पर सम्पूर्ण पृथ्वीवासी को अन्धकार मुक्त करने की क्षमता रखती है। रात का प्रस्थान धीरे-धीरे कालिमा के स्थान पर लालिमा में परिवर्तन जब होने लगता है उस समय आकाश का पूर्वी कोण उज्जवलता से सरावोर हो जाता है और खगों का समूह अपने घोसलों से निकलकर पंखों के फैलाए गोते पर गोत लगाता है तब नई सृजन का संदेश चहूं ओर विस्तारित हो जाती है।
     गत रात की धमकिय़ों ने सुबह को रोकना चाहा था पर भोटदाताओं के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। फिर भी ईशाणकोण के प्रभाकर को ढँकनेवाले भी पीछे नहीं थे,जिससे विहगों को अपनी दिशा बदलकर घोसले में वापस आना पड़ा। प्रात: के छ: बजे होंगे हवा में फूलों से निकलने वाली गंध के जगह बमों के धमाके सुनाई देते हैं और उसके धूओँ से हवा का दूषण बढ़ जाता है।इस दूषण का अनुसरन करती भोट की खबर आती है बूथ के पश्चिम हनुमान मंदिर के पास घोष बाड़ी के देबु को सड़क पर पटक कर पीट दिया गया है। उसका दोष इतना हीं था की वह विरोधी दल के कार्यकर्ता के घर का सदस्य था। फौरन हीं एक और खबर आती है कि बाईकरों का एक दल मुँह रुमाल एवं गमछा से ढँके खल्लमखुल्ला दीघीर दोनों पाड़ के रहनेवालों को धमकियाँ दिया है कि भोट की लाईन में खड़े होनेवाले सोच-समझकर हीं जाना।
जो भी हो सात बजे से मतदान प्रारम्भ हो गया। जैसे-जैसे घड़ी का कांटा आगे बढ़ रही थी हवा में गर्मी बढ़ती जा रही थी। यहाँ राजनैतिक देशभक्त गाँव,पाड़ा के लोगों को वोट डालने जाने के लिए उत्साहित कर रहे थे और उनके दाहिने हाथों के द्वारा मतदाताओं को पीट-पाट किया जा रहा है ताकि कोई भी बूथ के तरफ न जा पाये। इसी तरह के नरम-गरम खबरों के बीच मास्टरमशाय का पड़ोसी आकर बताता है अरुण चटर्जी पत्नी सहित उसी के पड़ोस के लड़कों के द्वारा घायल कर दिया गया है एवं उसका छोटा भाई बड़े भाई को बचाने जाता है तो उसे भी पीटने के लिए मुँह दबाकर बाँसबागान की ओर ले जा रहे थे। यह देख उसकी पत्नी रेखा दौड़ती हुई बूथ के गेट के पास मदद के लिए पहुँची,वहाँ नेताइन को कर्मीयों से बात करते हुई पाई। वह नेताइन को सब कुछ बताकर उसके पति को बचाने का अनुरोध करती है। नेताइन उससे कहती है,
-हमलोग ऐसा काम किसी को करने नहीं देंगे। हाँ अगर विरोधी दल का है तो स्वयं उसके(विरोधी)पाड़ा के लड़के हीं मार-पीट कर रहे हैं तो इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं। तब रेखा चटर्जी कहती है,
-दीदी,पहले हमारा परीवार विरोधी था पर इस समय तो शासनाधिन के समर्थक हैं क्योंकि साधारण नागरिकों के लिए आवश्यक सेवाओं की पूर्ति आपहीं लोग कर रही हैं। इसलिए लोग-बाग आपके हीं दल का समर्थन करेंगे। इस उत्तर से बेपरवाह नेताइन कहती है,
-घर चली जा और बेकार का समय बर्बाद मतकर। फिर पास खड़े लड़कों में से एक को कहती है,
-जा इसके पति को छोड़ देने के लिए कहो। शान्तनु बाबू इतना सब कहकर अपने घर की ओर चले गये और मास्टरमशाय दरवाजे की सीढ़ी की धापी पर बैठे खबर कागज पर नजर फेर रहे हैं। अभी प्रथम पृष्ठ का हेडींग हीं पढ़ना समाप्त किया था की अमर-शिवनाथ गली में दिख जाता है। लोगों को पुण्यकार्य में संयोजन कराने के लिए अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहा था। अमुकदा,तमुकदा,मासीमाँ,दादा,बौदी आदि का सम्बोधन के साथ-“अभी बूथ फाँका है। जल्दी जाओ और अपना भोट दो। पता नहीं हवा कब गर्म हो जाये”। मास्टरमशाय इस अप्रत्याशित व्यवहार के पिछे छुपे अभीप्राय को पहचानने का प्रयास करते हैं। जरुर दाल में काला है। कुछ हीं मिनटों में शिवनाथ-अमर की वापसी। दूर से हीं मास्टरमशाय को सम्बोधित करता है-ओ मास्टरमशाय, अभी भी आप बैठे हैं । बूथ एकदम खाली है। आपके ऐसा शिक्षित भी बैठे रहें तो अनपढ़ सारे क्या करेंगे। बिना उत्तर की प्रतिक्षा किए हीं दोनों जैसे आये थे वैसे हीं वापस चले गये।
बूथ वास्तव में बिलकुल शांत। गेट से अन्दर देखने पर भोटरों की कतारें यंत्रवत धिरे-धिरे बढ़ रही है और जब वोटिंग मशीन के पास पहुँचते हैं तब वहाँ पहले से हीं देशभक्त जनसेवक खड़ा मिलता है और वह भोटर को आदेश देता है बड़े प्यार से-“दादा,दीदी दूसरा बटन दबाकर चूपचाप चलते बनो”। वोटर दोनो-मोनो करता है कि खड़ा देशभक्त स्वयं हीं बटन दबा देता है तथा बकरा बना भोटर का चेहरा देखने लायक। उधर प्रीसाईडींग ऑफिसर कहता है-नेक्स्ट। कसाइ के चंगुल से निकलकर बकरा जनार्दन में-में करता हुआ वापस और गेट के बाहर जैसे हीं कदम रखा कि भेड़िए की आवाज-“क्यों श्रीमानजी या श्रीमतीजी नेता बनने का स्वाद लग गया है। पाड़ा में रहना है या नहीं”। सागर में रहकर मगरमच्छ से बैर कैसा। प्रतिदिन सुबह जागकर इन्ही लड़कों का मुँह देखना पड़ेगा। परेशान करने के ढेर सारे हथकंडे हैं। इसका ख्याल कर भोटर झेंपता सिधा अपना घर।
आज का युवा वर्ग लोकतांत्रिक शक्ति पाकर अमरत्व प्राप्ति का वर अपने नेताओं-नेताइनों से ले लेता है। वोटरों को घर से बुलाकर बूथ के कतारों में खड़ा कराना तथा जबरदस्ती वोट से विरत कर देना इन युवाओं का उत्सव बन चूका है। आज लोकतंत्र का एक वर्ग इस उत्सव पर अट्टहास कर रहा है और दूसरा वर्ग हाथ मलता है। रेडियो और टी.वी. पर समाचार प्रसारित हो रहे हैं कि राज्य में शांतिपूर्ण वोटींग हो रही है। मास्टरमशाय घर पर उहापोह की स्थिती में। एक मन कहता है वोट डाल आउं तो दूसरा मन कहता है गत रात की धमकी एवं आज सुबह प्यार का पैगाम वह भी एक हीं व्यक्ति के द्वारा शुभ लक्षण नहीं है, तय नहीं कर पा रहे हैं। घर के पिछवाड़ेवाला पड़ोसी की आवाज कानों में आती है-अच्छा हुआ। इसी से कहा जाता है कि पाप अपने बाप को भी नहीं छोड़ता है। बड़ा कल रात दादागिरी दिखाई थी,वोट देने जानेवाले परिणाम भुगतने को तैयार रहना। अन्तिम वाक्य को विशेष ढंग से अभिनित किया गया।मास्टरमशाय को लगता है जरुर कुछ गड़बड़ हुआ है। पुछकर देखता हूं,
-ओ दादा, क्या कुछ गड़बड़-सड़बड़ भी हुई क्या?
-हाँ, मास्टरमशाय। वह अमर है न,उसकी माँ को बूथ से बाहर निकालकर गुण्डों ने पीटा है। बुढ़िया घायल हो गई है तथा उसे अस्पताल ले गये हैं सब।
-लेकिन मासी माँ तो.....!
-नेता की माँ है यही न.......।
-हाँ-हाँ।
-तो सुनिये। अमर और शिवनाथ गली-गली घुमकर वृद्ध-वृद्धाओं को बूथ पर भेजने का दायित्व पालन कर रहा है एवं नेताईन के सह पर इन्हे अपमानित कर इनके उंगुलियों को स्वयं हीं पकड़कर दबाने का कार्य कोई और कर रहा था। यदि किसी ने विरोध करने का साहस दिखासा कि उसे अमर की माँ बना दी जा रही है। जिन्हे भाड़े पर लाया गया है वे तो केवल आदेश का पालन कर रहे हैं। उन्हे क्या जरुरत पड़ी है किसी को पहचानने की।
-लेकिन यह तो बड़ा गलत हुआ है।
-मास्टरमशाय, गलत आपको लगता है मुझे नहीं। क्योंकि एक निरक्षर आदमी होकर मैं इतना हीं कहूंगा कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है उसे भी गड्ढा में गिरना पड़ता है।
-शायद आप ठिक कह रहे हो।
-आलबत्त ठीक कह रहा हूं। कल रात की धमकी और उस दिन शिवनाथ का दहाड़ना मैं भूल जाउं।कभी नहीं। आज के नेता डरपोक और शैतान होते हैं। राजनीति एकदम गन्दी हो गई है और नेतागण देश की बोटी-बोटी नोच कर खा जायेंगे तथा हड्डियाँ पड़ी रहेगी ताकि उन पर फिर मांस जमेगी।
-लेकिन दादा, हड्डियों को हीं विरोध में खड़ा होना पड़ता है।
इस प्रकार की बातें समाप्त कर मास्टरमशाय घर वापस लौट आये। निश्चित समय पर चुनाव का परिणाम घोषित हुआ और सत्तापक्ष एकबार फिर कुर्सी दखल करने में सफल हो गये। परन्तु रास्ते के मोड़,चाय की दुकान, बाजारों में गुंज सुनाई दे रही थी की अगला भोट हमारा होगा। कितनी हड्डियों को तोड़ेंगे? जब सारी अस्थियाँ जुड़ जाती है तभी कंकाल का निर्माण होता है और उसपर मांस का लेप चढ़ता है सुन्दर काया का सृजन होता है।फिर देखेंगे इनको,इनको भी वैसे हीं पीटेंगे जैसे इन लोगों ने........। तेज गर्मी से सबकी काया झुलस रही है। लोक-बाग आराम की तलाश में पेड़ों की छाया, घर की छतों के निचे मंडरा रहे हैं। सारा शरीर लसलसे पसिने से तरबतर है। पंखे की हवा से थोड़ी राहत मिल जा रही है पर बाद में उसकी हवा भी गरम। अत: इन कष्टों से आराम पाने के लिए चाहिए वर्षा वह भी जमकर,तब जाकर धरती की प्यास बुझेगी।
        

गुरुवार, 13 जून 2019

आइए जानें संधि और संधि विच्छेद के बारे में

संधि का अर्थ है– मिलना। दो वर्णोँ या अक्षरोँ के परस्पर मेल से उत्पन्न विकार को 'संधि' कहते हैँ। जैसे– विद्या+आलय = विद्यालय। यहाँ विद्या शब्द का ‘आ’ वर्ण और आलय शब्द के ‘आ’ वर्ण मेँ संधि होकर ‘आ’ बना है।

संधि–विच्छेद: संधि शब्दोँ को अलग–अलग करके संधि से पहले की स्थिति मेँ लाना ही संधि विच्छेद कहलाता है। संधि का विच्छेद करने पर उन वर्णोँ का वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है। जैसे– हिमालय = हिम+आलय।
परस्पर मिलने वाले वर्ण स्वर, व्यंजन और विसर्ग होते हैँ, अतः इनके आधार पर ही संधि तीन प्रकार की होती है– (1) स्वर संधि, (2) व्यंजन संधि, (3) विसर्ग संधि।

1. स्वर संधि

जहाँ दो स्वरोँ का परस्पर मेल हो, उसे स्वर संधि कहते हैँ। दो स्वरोँ का परस्पर मेल संस्कृत व्याकरण के अनुसार प्रायः पाँच प्रकार से होता है–
(1) अ वर्ग = अ,
(2) इ वर्ग = इ, ई
(3) उ वर्ग = उ, ऊ
(4) ए वर्ग = ए, ऐ
(5) ओ वर्ग = ओ, औ।
इन्हीँ स्वर–वर्गोँ के आधार पर स्वर–संधि के पाँच प्रकार होते हैँ–
1.दीर्घ संधि– जब दो समान स्वर या सवर्ण मिल जाते हैँ, चाहे वे ह्रस्व होँ या दीर्घ, या एक ह्रस्व हो और दूसरा दीर्घ, तो उनके स्थान पर एक दीर्घ स्वर हो जाता है, इसी को सवर्ण दीर्घ स्वर संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+अ/आ = आ
दैत्य+अरि = दैत्यारि
राम+अवतार = रामावतार
देह+अंत = देहांत
अद्य+अवधि = अद्यावधि
उत्तम+अंग = उत्तमांग
सूर्य+अस्त = सूर्यास्त
कुश+आसन = कुशासन
धर्म+आत्मा = धर्मात्मा
परम+आत्मा = परमात्मा
कदा+अपि = कदापि
दीक्षा+अंत = दीक्षांत
वर्षा+अंत = वर्षाँत
गदा+आघात = गदाघात
आत्मा+ आनंद = आत्मानंद
जन्म+अन्ध = जन्मान्ध
श्रद्धा+आलु = श्रद्धालु
सभा+अध्याक्ष = सभाध्यक्ष
पुरुष+अर्थ = पुरुषार्थ
हिम+आलय = हिमालय
परम+अर्थ = परमार्थ
स्व+अर्थ = स्वार्थ
स्व+अधीन = स्वाधीन
पर+अधीन = पराधीन
शस्त्र+अस्त्र = शस्त्रास्त्र
परम+अणु = परमाणु
वेद+अन्त = वेदान्त
अधिक+अंश = अधिकांश
गव+गवाक्ष = गवाक्ष
सुषुप्त+अवस्था = सुषुप्तावस्था
अभय+अरण्य = अभयारण्य
विद्या+आलय = विद्यालय
दया+आनन्द = दयानन्द
श्रदा+आनन्द = श्रद्धानन्द
महा+आशय = महाशय
वार्ता+आलाप = वार्तालाप
माया+ आचरण = मायाचरण
महा+अमात्य = महामात्य
द्राक्षा+अरिष्ट = द्राक्षारिष्ट
मूल्य+अंकन = मूल्यांकन
भय+आनक = भयानक
मुक्त+अवली = मुक्तावली
दीप+अवली = दीपावली
प्रश्न+अवली = प्रश्नावली
कृपा+आकांक्षी = कृपाकांक्षी
विस्मय+आदि = विस्मयादि
सत्य+आग्रह = सत्याग्रह
प्राण+आयाम = प्राणायाम
शुभ+आरंभ = शुभारंभ
मरण+आसन्न = मरणासन्न
शरण+आगत = शरणागत
नील+आकाश = नीलाकाश
भाव+आविष्ट = भावाविष्ट
सर्व+अंगीण = सर्वांगीण
अंत्य+अक्षरी = अंत्याक्षरी
रेखा+अंश = रेखांश
विद्या+अर्थी = विद्यार्थी
रेखा+अंकित = रेखांकित
परीक्षा+अर्थी = परीक्षार्थी
सीमा+अंकित = सीमांकित
माया+अधीन = मायाधीन
परा+अस्त = परास्त
निशा+अंत = निशांत
गीत+अंजलि = गीतांजलि
प्र+अर्थी = प्रार्थी
प्र+अंगन = प्रांगण
काम+अयनी = कामायनी
प्रधान+अध्यापक = प्रधानाध्यापक
विभाग+अध्यक्ष = विभागाध्यक्ष
शिव+आलय = शिवालय
पुस्तक+आलय = पुस्तकालय
चर+अचर = चराचर

इ/ई+इ/ई = ई
रवि+इन्द्र = रवीन्द्र
मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र
कवि+इन्द्र = कवीन्द्र
गिरि+इन्द्र = गिरीन्द्र
अभि+इष्ट = अभीष्ट
शचि+इन्द्र = शचीन्द्र
यति+इन्द्र = यतीन्द्र
पृथ्वी+ईश्वर = पृथ्वीश्वर
श्री+ईश = श्रीश
नदी+ईश = नदीश
रजनी+ईश = रजनीश
मही+ईश = महीश
नारी+ईश्वर = नारीश्वर
गिरि+ईश = गिरीश
हरि+ईश = हरीश
कवि+ईश = कवीश
कपि+ईश = कपीश
मुनि+ईश्वर = मुनीश्वर
प्रति+ईक्षा = प्रतीक्षा
अभि+ईप्सा = अभीप्सा
मही+इन्द्र = महीन्द्र
नारी+इच्छा = नारीच्छा
नारी+इन्द्र = नारीन्द्र
नदी+इन्द्र = नदीन्द्र
सती+ईश = सतीश
परि+ईक्षा = परीक्षा
अधि+ईक्षक = अधीक्षक
वि+ईक्षण = वीक्षण
फण+इन्द्र = फणीन्द्र
प्रति+इत = प्रतीत
परि+ईक्षित = परीक्षित
परि+ईक्षक = परीक्षक

उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ
भानु+उदय = भानूदय
लघु+ऊर्मि = लघूर्मि
गुरु+उपदेश = गुरूपदेश
सिँधु+ऊर्मि = सिँधूर्मि
सु+उक्ति = सूक्ति
लघु+उत्तर = लघूत्तर
मंजु+उषा = मंजूषा
साधु+उपदेश = साधूपदेश
लघु+उत्तम = लघूत्तम
भू+ऊर्ध्व = भूर्ध्व
वधू+उर्मि = वधूर्मि
वधू+उत्सव = वधूत्सव
भू+उपरि = भूपरि
वधू+उक्ति = वधूक्ति
अनु+उदित = अनूदित
सरयू+ऊर्मि = सरयूर्मि
ऋ/ॠ+ऋ/ॠ = ॠ
मातृ+ऋण = मात्ॠण
पितृ+ऋण = पित्ॠण
भ्रातृ+ऋण = भ्रात्ॠण

2. गुण संधि–
अ या आ के बाद यदि ह्रस्व इ, उ, ऋ अथवा दीर्घ ई, ऊ, ॠ स्वर होँ, तो उनमेँ संधि होकर क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है, इसे गुण संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+इ/ई = ए
भारत+इन्द्र = भारतेन्द्र
देव+इन्द्र = देवेन्द्र
नर+इन्द्र = नरेन्द्र
सुर+इन्द्र = सुरेन्द्र
वीर+इन्द्र = वीरेन्द्र
स्व+इच्छा = स्वेच्छा
न+इति = नेति
अंत्य+इष्टि = अंत्येष्टि
महा+इन्द्र = महेन्द्र
रमा+इन्द्र = रमेन्द्र
राजा+इन्द्र = राजेन्द्र
यथा+इष्ट = यथेष्ट
रसना+इन्द्रिय = रसनेन्द्रिय
सुधा+इन्दु = सुधेन्दु
सोम+ईश = सोमेश
महा+ईश = महेश
नर+ईश = नरेश
रमा+ईश = रमेश
परम+ईश्वर = परमेश्वर
राजा+ईश = राजेश
गण+ईश = गणेश
राका+ईश = राकेश
अंक+ईक्षण = अंकेक्षण
लंका+ईश = लंकेश
महा+ईश्वर = महेश्वर
प्र+ईक्षक = प्रेक्षक
उप+ईक्षा = उपेक्षा

अ/आ+उ/ऊ = ओ
सूर्य+उदय = सूर्योदय
पूर्व+उदय = पूर्वोदय
पर+उपकार = परोपकार
लोक+उक्ति = लोकोक्ति
वीर+उचित = वीरोचित
आद्य+उपान्त = आद्योपान्त
नव+ऊढ़ा = नवोढ़ा
समुद्र+ऊर्मि = समुद्रोर्मि
जल+ऊर्मि = जलोर्मि
महा+उत्सव = महोत्सव
महा+उदधि = महोदधि
गंगा+उदक = गंगोदक
यथा+उचित = यथोचित
कथा+उपकथन = कथोपकथन
स्वातंत्र्य+उत्तर = स्वातंत्र्योत्तर
गंगा+ऊर्मि = गंगोर्मि
महा+ऊर्मि = महोर्मि
आत्म+उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग
महा+उदय = महोदय
करुणा+उत्पादक = करुणोत्पादक
विद्या+उपार्जन = विद्योपार्जन
प्र+ऊढ़ = प्रौढ़
अक्ष+हिनी = अक्षौहिनी
अ/आ+ऋ = अर्
ब्रह्म+ऋषि = ब्रह्मर्षि
देव+ऋषि = देवर्षि
महा+ऋषि = महर्षि
महा+ऋद्धि = महर्द्धि
राज+ऋषि = राजर्षि
सप्त+ऋषि = सप्तर्षि
सदा+ऋतु = सदर्तु
शिशिर+ऋतु = शिशिरर्तु
महा+ऋण = महर्ण

3. वृद्धि संधि–
अ या आ के बाद यदि ए, ऐ होँ तो इनके स्थान पर ‘ऐ’ तथा अ, आ के बाद ओ, औ होँ तो इनके स्थान पर ‘औ’ हो जाता है। ‘ऐ’ तथा ‘औ’ स्वर ‘वृद्धि स्वर’ कहलाते हैँ अतः इस संधि को वृद्धि संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+ए/ऐ = ऐ
एक+एक = एकैक
मत+ऐक्य = मतैक्य
सदा+एव = सदैव
स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक
लोक+एषणा = लोकैषणा
महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य
पुत्र+ऐषणा = पुत्रैषणा
वसुधा+ऐव = वसुधैव
तथा+एव = तथैव
महा+ऐन्द्रजालिक = महैन्द्रजालिक
हित+एषी = हितैषी
वित्त+एषणा = वित्तैषणा
अ/आ+ओ/औ = औ
वन+ओषध = वनौषध
परम+ओज = परमौज
महा+औघ = महौघ
महा+औदार्य = महौदार्य
परम+औदार्य = परमौदार्य
जल+ओध = जलौध
महा+औषधि = महौषधि
प्र+औद्योगिकी = प्रौद्योगिकी
दंत+ओष्ठ = दंतोष्ठ (अपवाद)

4. यण संधि–
जब हृस्व इ, उ, ऋ या दीर्घ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान स्वर आये, तो इ, ई के स्थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। इसे यण् संधि कहते हैँ।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि इ/ई या उ/ऊ स्वर तो 'य्' या 'व्' मेँ बदल जाते हैँ किँतु जिस व्यंजन के ये स्वर लगे होते हैँ, वह संधि होने पर स्वर–रहित हो जाता है। जैसे– अभि+अर्थी = अभ्यार्थी, तनु+अंगी = तन्वंगी। यहाँ अभ्यर्थी मेँ ‘य्’ के पहले 'भ्' तथा तन्वंगी मेँ ‘व्’ के पहले 'न्' स्वर–रहित हैँ। प्रायः य्, व्, र् से पहले स्वर–रहित व्यंजन का होना यण् संधि की पहचान है। जैसे–
इ/ई+अ = य
यदि+अपि = यद्यपि
परि+अटन = पर्यटन
नि+अस्त = न्यस्त
वि+अस्त = व्यस्त
वि+अय = व्यय
वि+अग्र = व्यग्र
परि+अंक = पर्यँक
परि+अवेक्षक = पर्यवेक्षक
वि+अष्टि = व्यष्टि
वि+अंजन = व्यंजन
वि+अवहार = व्यवहार
वि+अभिचार = व्यभिचार
वि+अक्ति = व्यक्ति
वि+अवस्था = व्यवस्था
वि+अवसाय = व्यवसाय
प्रति+अय = प्रत्यय
नदी+अर्पण = नद्यर्पण
अभि+अर्थी = अभ्यर्थी
परि+अंत = पर्यँत
अभि+उदय = अभ्युदय
देवी+अर्पण = देव्यर्पण
प्रति+अर्पण = प्रत्यर्पण
प्रति+अक्ष = प्रत्यक्ष
वि+अंग्य = व्यंग्य
इ/ई+आ = या
वि+आप्त = व्याप्त
अधि+आय = अध्याय
इति+आदि = इत्यादि
परि+आवरण = पर्यावरण
अभि+आगत = अभ्यागत
वि+आस = व्यास
वि+आयाम = व्यायाम
अधि+आदेश = अध्यादेश
वि+आख्यान = व्याख्यान
प्रति+आशी = प्रत्याशी
अधि+आपक = अध्यापक
वि+आकुल = व्याकुल
अधि+आत्म = अध्यात्म
प्रति+आवर्तन = प्रत्यावर्तन
प्रति+आशित = प्रत्याशित
प्रति+आभूति = प्रत्याभूति
प्रति+आरोपण = प्रत्यारोपण
वि+आवृत्त = व्यावृत्त
वि+आधि = व्याधि
वि+आहत = व्याहत
प्रति+आहार = प्रत्याहार
अभि+आस = अभ्यास
सखी+आगमन = सख्यागमन
मही+आधार = मह्याधार
इ/ई+उ/ऊ = यु/यू
परि+उषण = पर्युषण
नारी+उचित = नार्युचित
उपरि+उक्त = उपर्युक्त
स्त्री+उपयोगी = स्त्र्युपयोगी
अभि+उदय = अभ्युदय
अति+उक्ति = अत्युक्ति
प्रति+उत्तर = प्रत्युत्तर
अभि+उत्थान = अभ्युत्थान
आदि+उपांत = आद्युपांत
अति+उत्तम = अत्युत्तम
स्त्री+उचित = स्त्र्युचित
प्रति+उत्पन्न = प्रत्युत्पन्न
प्रति+उपकार = प्रत्युपकार
वि+उत्पत्ति = व्युत्पत्ति
वि+उपदेश = व्युपदेश
नि+ऊन = न्यून
प्रति+ऊह = प्रत्यूह
वि+ऊह = व्यूह
अभि+ऊह = अभ्यूह
इ/ई+ए/ओ/औ = ये/यो/यौ
प्रति+एक = प्रत्येक
वि+ओम = व्योम
वाणी+औचित्य = वाण्यौचित्य
उ/ऊ+अ/आ = व/वा
तनु+अंगी = तन्वंगी
अनु+अय = अन्वय
मधु+अरि = मध्वरि
सु+अल्प = स्वल्प
समनु+अय = समन्वय
सु+अस्ति = स्वस्ति
परमाणु+अस्त्र = परमाण्वस्त्र
सु+आगत = स्वागत
साधु+आचार = साध्वाचार
गुरु+आदेश = गुर्वादेश
मधु+आचार्य = मध्वाचार्य
वधू+आगमन = वध्वागमन
ऋतु+आगमन = ऋत्वागमन
सु+आभास = स्वाभास
सु+आगम = स्वागम
उ/ऊ+इ/ई/ए = वि/वी/वे
अनु+इति = अन्विति
धातु+इक = धात्विक
अनु+इष्ट = अन्विष्ट
पू+इत्र = पवित्र
अनु+ईक्षा = अन्वीक्षा
अनु+ईक्षण = अन्वीक्षण
तनु+ई = तन्वी
धातु+ईय = धात्वीय
अनु+एषण = अन्वेषण
अनु+एषक = अन्वेषक
अनु+एक्षक = अन्वेक्षक
ऋ+अ/आ/इ/उ = र/रा/रि/रु
मातृ+अर्थ = मात्रर्थ
पितृ+अनुमति = पित्रनुमति
मातृ+आनन्द = मात्रानन्द
पितृ+आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ+आज्ञा = मात्राज्ञा
पितृ+आदेश = पित्रादेश
मातृ+आदेश = मात्रादेश
मातृ+इच्छा = मात्रिच्छा
पितृ+इच्छा = पित्रिच्छा
मातृ+उपदेश = मात्रुपदेश
पितृ+उपदेश = पित्रुपदेश

5. अयादि संधि–
ए, ऐ, ओ, औ के बाद यदि कोई असमान स्वर हो, तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ तथा ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैँ। जैसे–
ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आयि
ने+अन = नयन
शे+अन = शयन
चे+अन = चयन
संचे+अ = संचय
चै+अ = चाय
गै+अक = गायक
गै+अन् = गायन
नै+अक = नायक
दै+अक = दायक
शै+अर = शायर
विधै+अक = विधायक
विनै+अक = विनायक
नै+इका = नायिका
गै+इका = गायिका
दै+इनी = दायिनी
विधै+इका = विधायिका
ओ/औ+अ = अव/आव
भो+अन् = भवन
पो+अन् = पवन
भो+अति = भवति
हो+अन् = हवन
पौ+अन् = पावन
धौ+अक = धावक
पौ+अक = पावक
शौ+अक = शावक
भौ+अ = भाव
श्रौ+अन = श्रावण
रौ+अन = रावण
स्रौ+अ = स्राव
प्रस्तौ+अ = प्रस्ताव
गव+अक्ष = गवाक्ष (अपवाद)
ओ/औ+इ/ई/उ = अवि/अवी/आवु
रो+इ = रवि
भो+इष्य = भविष्य
गौ+ईश = गवीश
नौ+इक = नाविक
प्रभौ+इति = प्रभावित
प्रस्तौ+इत = प्रस्तावित
भौ+उक = भावुक

2. व्यंजन संधि
व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन के मेल को व्यंजन संधि कहते हैँ। व्यंजन संधि मेँ एक स्वर और एक व्यंजन या दोनोँ वर्ण व्यंजन होते हैँ। इसके अनेक भेद होते हैँ। व्यंजन संधि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैँ–
1. यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के बाद कोई स्वर, किसी भी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह मेँ से कोई वर्ण आये तो प्रथम वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे–
'क्' का 'ग्' होना
दिक्+अम्बर = दिगम्बर
दिक्+दर्शन = दिग्दर्शन
वाक्+जाल = वाग्जाल
वाक्+ईश = वागीश
दिक्+अंत = दिगंत
दिक्+गज = दिग्गज
ऋक्+वेद = ऋग्वेद
दृक्+अंचल = दृगंचल
वाक्+ईश्वरी = वागीश्वरी
प्राक्+ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
दिक्+गयंद = दिग्गयंद
वाक्+जड़ता = वाग्जड़ता
सम्यक्+ज्ञान = सम्यग्ज्ञान
वाक्+दान = वाग्दान
दिक्+भ्रम = दिग्भ्रम
वाक्+दत्ता = वाग्दत्ता
दिक्+वधू = दिग्वधू
दिक्+हस्ती = दिग्हस्ती
वाक्+व्यापार = वाग्व्यापार
वाक्+हरि = वाग्हरि
‘च्’ का ‘ज्’
अच्+अन्त = अजन्त
अच्+आदि = अजादि
णिच्+अंत = णिजंत
‘ट्’ का ‘ड्’
षट्+आनन = षडानन
षट्+दर्शन = षड्दर्शन
षट्+रिपु = षड्रिपु
षट्+अक्षर = षडक्षर
षट्+अभिज्ञ = षडभिज्ञ
षट्+गुण = षड्गुण
षट्+भुजा = षड्भुजा
षट्+यंत्र = षड्यंत्र
षट्+रस = षड्रस
षट्+राग = षड्राग
‘त्’ का ‘द्’
सत्+विचार = सद्विचार
जगत्+अम्बा = जगदम्बा
सत्+धर्म = सद्धर्म
तत्+भव = तद्भव
उत्+घाटन = उद्घाटन
सत्+आशय = सदाशय
जगत्+आत्मा = जगदात्मा
सत्+आचार = सदाचार
जगत्+ईश = जगदीश
तत्+अनुसार = तदनुसार
तत्+रूप = तद्रूप
सत्+उपयोग = सदुपयोग
भगवत्+गीता = भगवद्गीता
सत्+गति = सद्गति
उत्+गम = उद्गम
उत्+आहरण = उदाहरण
इस नियम का अपवाद भी है जो इस प्रकार है–
त्+ड/ढ = त् के स्थान पर ड्
त्+ज/झ = त् के स्थान पर ज्
त्+ल् = त् के स्थान पर ल्
जैसे–
उत्+डयन = उड्डयन
सत्+जन = सज्जन
उत्+लंघन = उल्लंघन
उत्+लेख = उल्लेख
तत्+जन्य = तज्जन्य
उत्+ज्वल = उज्ज्वल
विपत्+जाल = विपत्जाल
उत्+लास = उल्लास
तत्+लीन = तल्लीन
जगत्+जननी = जगज्जननी

2.यदि किसी वर्ग के प्रथम या तृतीय वर्ण के बाद किसी वर्ग का पंचम वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म) हो तो पहला या तीसरा वर्ण भी पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे–
प्रथम/तृतीय वर्ण+पंचम वर्ण = पंचम वर्ण
वाक्+मय = वाङ्मय
दिक्+नाग = दिङ्नाग
सत्+नारी = सन्नारी
जगत्+नाथ = जगन्नाथ
सत्+मार्ग = सन्मार्ग
चित्+मय = चिन्मय
सत्+मति = सन्मति
उत्+नायक = उन्नायक
उत्+मूलन = उन्मूलन
अप्+मय = अम्मय
सत्+मान = सन्मान
उत्+माद = उन्माद
उत्+नत = उन्नत
वाक्+निपुण = वाङ्निपुण
जगत्+माता = जगन्माता
उत्+मत्त = उन्मत्त
उत्+मेष = उन्मेष
तत्+नाम = तन्नाम
उत्+नयन = उन्नयन
षट्+मुख = षण्मुख
उत्+मुख = उन्मुख
श्रीमत्+नारायण = श्रीमन्नारायण
षट्+मूर्ति = षण्मूर्ति
उत्+मोचन = उन्मोचन
भवत्+निष्ठ = भवन्निष्ठ
तत्+मय = तन्मय
षट्+मास = षण्मास
सत्+नियम = सन्नियम
दिक्+नाथ = दिङ्नाथ
वृहत्+माला = वृहन्माला
वृहत्+नला = वृहन्नला

3. ‘त्’ या ‘द्’ के बाद च या छ हो तो ‘त्/द्’ के स्थान पर ‘च्’, ‘ज्’ या ‘झ’ हो तो ‘ज्’, ‘ट्’ या ‘ठ्’ हो तो ‘ट्’, ‘ड्’ या ‘ढ’ हो तो ‘ड्’ और ‘ल’ हो तो ‘ल्’ हो जाता है। जैसे–
त्+च/छ = च्च/च्छ
सत्+छात्र = सच्छात्र
सत्+चरित्र = सच्चरित्र
समुत्+चय = समुच्चय
उत्+चरित = उच्चरित
सत्+चित = सच्चित
जगत्+छाया = जगच्छाया
उत्+छेद = उच्छेद
उत्+चाटन = उच्चाटन
उत्+चारण = उच्चारण
शरत्+चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत्+छिन = उच्छिन
सत्+चिदानन्द = सच्चिदानन्द
उत्+छादन = उच्छादन
त्/द्+ज्/झ् = ज्ज/ज्झ
सत्+जन = सज्जन
तत्+जन्य = तज्जन्य
उत्+ज्वल = उज्ज्वल
जगत्+जननी = जगज्जननी
त्+ट/ठ = ट्ट/ट्ठ
तत्+टीका = तट्टीका
वृहत्+टीका = वृहट्टीका
त्+ड/ढ = ड्ड/ड्ढ
उत्+डयन = उड्डयन
जलत्+डमरु = जलड्डमरु
भवत्+डमरु = भवड्डमरु
महत्+ढाल = महड्ढाल
त्+ल = ल्ल
उत्+लेख = उल्लेख
उत्+लास = उल्लास
तत्+लीन = तल्लीन
उत्+लंघन = उल्लंघन

4. यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ह’ आये तो उनके स्थान पर ‘द्ध’ हो जाता है। जैसे–
उत्+हार = उद्धार
तत्+हित = तद्धित
उत्+हरण = उद्धरण
उत्+हत = उद्धत
पत्+हति = पद्धति
पत्+हरि = पद्धरि
उपर्युक्त संधियाँ का दूसरा रूप इस प्रकार प्रचलित है–
उद्+हार = उद्धार
तद्+हित = तद्धित
उद्+हरण = उद्धरण
उद्+हत = उद्धत
पद्+हति = पद्धति
ये संधियाँ दोनोँ प्रकार से मान्य हैँ।

5. यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘श्’ हो तो ‘त् या द्’ का ‘च्’ और ‘श्’ का ‘छ्’ हो जाता है। जैसे–
त्/द्+श् = च्छ
उत्+श्वास = उच्छ्वास
तत्+शिव = तच्छिव
उत्+शिष्ट = उच्छिष्ट
मृद्+शकटिक = मृच्छकटिक
सत्+शास्त्र = सच्छास्त्र
तत्+शंकर = तच्छंकर
उत्+शृंखल = उच्छृंखल

6. यदि किसी भी स्वर वर्ण के बाद ‘छ’ हो तो वह ‘च्छ’ हो जाता है। जैसे–
कोई स्वर+छ = च्छ
अनु+छेद = अनुच्छेद
परि+छेद = परिच्छेद
वि+छेद = विच्छेद
तरु+छाया = तरुच्छाया
स्व+छन्द = स्वच्छन्द
आ+छादन = आच्छादन
वृक्ष+छाया = वृक्षच्छाया

7. यदि ‘त्’ के बाद ‘स्’ (हलन्त) हो तो ‘स्’ का लोप हो जाता है। जैसे–
उत्+स्थान = उत्थान
उत्+स्थित = उत्थित

8. यदि ‘म्’ के बाद ‘क्’ से ‘भ्’ तक का कोई भी स्पर्श व्यंजन हो तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है, या उसी वर्ग का पाँचवाँ अनुनासिक वर्ण बन जाता है। जैसे–
म्+कोई व्यंजन = म् के स्थान पर अनुस्वार (ं ) या उसी वर्ग का पंचम वर्ण
सम्+चार = संचार/सञ्चार
सम्+कल्प = संकल्प/सङ्कल्प
सम्+ध्या = संध्या/सन्ध्या
सम्+भव = संभव/सम्भव
सम्+पूर्ण = संपूर्ण/सम्पूर्ण
सम्+जीवनी = संजीवनी
सम्+तोष = संतोष/सन्तोष
किम्+कर = किँकर/किङ्कर
सम्+बन्ध = संबन्ध/सम्बन्ध
सम्+धि = संधि/सन्धि
सम्+गति = संगति/सङ्गति
सम्+चय = संचय/सञ्चय
परम्+तु = परन्तु/परंतु
दम्+ड = दण्ड/दंड
दिवम्+गत = दिवंगत
अलम्+कार = अलंकार
शुभम्+कर = शुभंकर
सम्+कलन = संकलन
सम्+घनन = संघनन
पम्+चम् = पंचम
सम्+तुष्ट = संतुष्ट/सन्तुष्ट
सम्+दिग्ध = संदिग्ध/सन्दिग्ध
अम्+ड = अण्ड/अंड
सम्+तति = संतति
सम्+क्षेप = संक्षेप
अम्+क = अंक/अङ्क
हृदयम्+गम = हृदयंगम
सम्+गठन = संगठन/सङ्गठन
सम्+जय = संजय
सम्+ज्ञा = संज्ञा
सम्+क्रांति = संक्रान्ति
सम्+देश = संदेश/सन्देश
सम्+चित = संचित/सञ्चित
किम्+तु = किँतु/किन्तु
वसुम्+धर = वसुन्धरा/वसुंधरा
सम्+भाषण = संभाषण
तीर्थँम्+कर = तीर्थँकर
सम्+कर = संकर
सम्+घटन = संघटन
किम्+चित = किँचित
धनम्+जय = धनंजय/धनञ्जय
सम्+देह = सन्देह/संदेह
सम्+न्यासी = संन्यासी
सम्+निकट = सन्निकट

9. यदि ‘म्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘म्’ अपरिवर्तित रहता है। जैसे–
म्+म = म्म
सम्+मति = सम्मति
सम्+मिश्रण = सम्मिश्रण
सम्+मिलित = सम्मिलित
सम्+मान = सम्मान
सम्+मोहन = सम्मोहन
सम्+मानित = सम्मानित
सम्+मुख = सम्मुख

10. यदि ‘म्’ के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह मेँ से कोई वर्ण आये तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (ं ) हो जाता है। जैसे–
म्+य, र, ल, व, श, ष, स, ह = अनुस्वार (ं )
सम्+योग = संयोग
सम्+वाद = संवाद
सम्+हार = संहार
सम्+लग्न = संलग्न
सम्+रक्षण = संरक्षण
सम्+शय = संशय
किम्+वा = किँवा
सम्+विधान = संविधान
सम्+शोधन = संशोधन
सम्+रक्षा = संरक्षा
सम्+सार = संसार
सम्+रक्षक = संरक्षक
सम्+युक्त = संयुक्त
सम्+स्मरण = संस्मरण
स्वयम्+वर = स्वयंवर
सम्+हित = संहिता

11. यदि ‘स’ से पहले अ या आ से भिन्न कोई स्वर हो तो स का ‘ष’ हो जाता है। जैसे–
अ, आ से भिन्न स्वर+स = स के स्थान पर ष
वि+सम = विषम
नि+सेध = निषेध
नि+सिद्ध = निषिद्ध
अभि+सेक = अभिषेक
परि+सद् = परिषद्
नि+स्नात = निष्णात
अभि+सिक्त = अभिषिक्त
सु+सुप्ति = सुषुप्ति
उपनि+सद = उपनिषद
अपवाद–
अनु+सरण = अनुसरण
अनु+स्वार = अनुस्वार
वि+स्मरण = विस्मरण
वि+सर्ग = विसर्ग

12. यदि ‘ष्’ के बाद ‘त’ या ‘थ’ हो तो ‘ष्’ आधा वर्ण तथा ‘त’ के स्थान पर ‘ट’ और ‘थ’ के स्थान पर ‘ठ’ हो जाता है। जैसे–
ष्+त/थ = ष्ट/ष्ठ
आकृष्+त = आकृष्ट
उत्कृष्+त = उत्कृष्ट
तुष्+त = तुष्ट
सृष्+ति = सृष्टि
षष्+थ = षष्ठ
पृष्+थ = पृष्ठ

13. यदि ‘द्’ के बाद क, त, थ, प या स आये तो ‘द्’ का ‘त्’ हो जाता है। जैसे–
द्+क, त, थ, प, स = द् की जगह त्
उद्+कोच = उत्कोच
मृद्+तिका = मृत्तिका
विपद्+ति = विपत्ति
आपद्+ति = आपत्ति
तद्+पर = तत्पर
संसद्+सत्र = संसत्सत्र
संसद्+सदस्य = संसत्सदस्य
उपनिषद्+काल = उपनिषत्काल
उद्+तर = उत्तर
तद्+क्षण = तत्क्षण
विपद्+काल = विपत्काल
शरद्+काल = शरत्काल
मृद्+पात्र = मृत्पात्र

14. यदि ‘ऋ’ और ‘द्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘द्’ का ‘ण्’ बन जाता है। जैसे–
ऋद्+म = ण्म
मृद्+मय = मृण्मय
मृद्+मूर्ति = मृण्मूर्ति

15. यदि इ, ऋ, र, ष के बाद स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार, य, व, ह मेँ से किसी वर्ण के बाद ‘न’ आ जाये तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। जैसे–
(i) इ/ऋ/र/ष+ न= न के स्थान पर ण
(ii) इ/ऋ/र/ष+स्वर/क वर्ग/प वर्ग/अनुस्वार/य, व, ह+न = न के स्थान पर ण
प्र+मान = प्रमाण
भर+न = भरण
नार+अयन = नारायण
परि+मान = परिमाण
परि+नाम = परिणाम
प्र+यान = प्रयाण
तर+न = तरण
शोष्+अन् = शोषण
परि+नत = परिणत
पोष्+अन् = पोषण
विष्+नु = विष्णु
राम+अयन = रामायण
भूष्+अन = भूषण
ऋ+न = ऋण
मर+न = मरण
पुरा+न = पुराण
हर+न = हरण
तृष्+ना = तृष्णा
तृ+न = तृण
प्र+न = प्रण

16. यदि सम् के बाद कृत, कृति, करण, कार आदि मेँ से कोई शब्द आये तो म् का अनुस्वार बन जाता है एवं स् का आगमन हो जाता है। जैसे–
सम्+कृत = संस्कृत
सम्+कृति = संस्कृति
सम्+करण = संस्करण
सम्+कार = संस्कार

17. यदि परि के बाद कृत, कार, कृति, करण आदि मेँ से कोई शब्द आये तो संधि मेँ ‘परि’ के बाद ‘ष्’ का आगम हो जाता है। जैसे–
परि+कार = परिष्कार
परि+कृत = परिष्कृत
परि+करण = परिष्करण
परि+कृति = परिष्कृति

3. विसर्ग संधि
जहाँ विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग का लोप हो जाता है या विसर्ग के स्थान पर कोई नया वर्ण आ जाता है, वहाँ विसर्ग संधि होती है।

विसर्ग संधि के नियम निम्न प्रकार हैँ–
1. यदि ‘अ’ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवाँ वर्ण या अन्तःस्थ वर्ण (य, र, ल, व) हो, तो ‘अः’ का ‘ओ’ हो जाता है। जैसे–
अः+किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण, य, र, ल, व = अः का ओ
मनः+वेग = मनोवेग
मनः+अभिलाषा = मनोभिलाषा
मनः+अनुभूति = मनोभूति
पयः+निधि = पयोनिधि
यशः+अभिलाषा = यशोभिलाषा
मनः+बल = मनोबल
मनः+रंजन = मनोरंजन
तपः+बल = तपोबल
तपः+भूमि = तपोभूमि
मनः+हर = मनोहर
वयः+वृद्ध = वयोवृद्ध
सरः+ज = सरोज
मनः+नयन = मनोनयन
पयः+द = पयोद
तपः+धन = तपोधन
उरः+ज = उरोज
शिरः+भाग = शिरोभाग
मनः+व्यथा = मनोव्यथा
मनः+नीत = मनोनीत
तमः+गुण = तमोगुण
पुरः+गामी = पुरोगामी
रजः+गुण = रजोगुण
मनः+विकार = मनोविकार
अधः+गति = अधोगति
पुरः+हित = पुरोहित
यशः+दा = यशोदा
यशः+गान = यशोगान
मनः+ज = मनोज
मनः+विज्ञान = मनोविज्ञान
मनः+दशा = मनोदशा

2. यदि विसर्ग से पहले और बाद मेँ ‘अ’ हो, तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओऽ’ या ‘ओ’ हो जाता है तथा बाद के ‘अ’ का लोप हो जाता है। जैसे–
अः+अ = ओऽ/ओ
यशः+अर्थी = यशोऽर्थी/यशोर्थी
मनः+अनुकूल = मनोऽनुकूल/मनोनुकूल
प्रथमः+अध्याय = प्रथमोऽध्याय/प्रथमोध्याय
मनः+अभिराम = मनोऽभिराम/मनोभिराम
परः+अक्ष = परोक्ष

3. यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ से भिन्न कोई स्वर तथा बाद मेँ कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व मेँ से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है। जैसे–
अ, आ से भिन्न स्वर+वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण/य, र, ल, व, ह = (:) का ‘र्’
दुः+बल = दुर्बल
पुनः+आगमन = पुनरागमन
आशीः+वाद = आशीर्वाद
निः+मल = निर्मल
दुः+गुण = दुर्गुण
आयुः+वेद = आयुर्वेद
बहिः+रंग = बहिरंग
दुः+उपयोग = दुरुपयोग
निः+बल = निर्बल
बहिः+मुख = बहिर्मुख
दुः+ग = दुर्ग
प्रादुः+भाव = प्रादुर्भाव
निः+आशा = निराशा
निः+अर्थक = निरर्थक
निः+यात = निर्यात
दुः+आशा = दुराशा
निः+उत्साह = निरुत्साह
आविः+भाव = आविर्भाव
आशीः+वचन = आशीर्वचन
निः+आहार = निराहार
निः+आधार = निराधार
निः+भय = निर्भय
निः+आमिष = निरामिष
निः+विघ्न = निर्विघ्न
धनुः+धर = धनुर्धर

4. यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और विसर्ग से पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है। जैसे–
हृस्व स्वर(:)+र = (:) का लोप व पूर्व का स्वर दीर्घ
निः+रोग = नीरोग
निः+रज = नीरज
निः+रस = नीरस
निः+रव = नीरव

5. यदि विसर्ग के बाद ‘च’ या ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट’ या ‘ठ’ हो तो ‘ष्’ तथा ‘त’, ‘थ’, ‘क’, ‘स्’ हो तो ‘स्’ हो जाता है। जैसे–
विसर्ग (:)+च/छ = श्
निः+चय = निश्चय
निः+चिन्त = निश्चिन्त
दुः+चरित्र = दुश्चरित्र
हयिः+चन्द्र = हरिश्चन्द्र
पुरः+चरण = पुरश्चरण
तपः+चर्या = तपश्चर्या
कः+चित् = कश्चित्
मनः+चिकित्सा = मनश्चिकित्सा
निः+चल = निश्चल
निः+छल = निश्छल
दुः+चक्र = दुश्चक्र
पुनः+चर्या = पुनश्चर्या
अः+चर्य = आश्चर्य
विसर्ग(:)+ट/ठ = ष्
धनुः+टंकार = धनुष्टंकार
निः+ठुर = निष्ठुर
विसर्ग(:)+त/थ = स्
मनः+ताप = मनस्ताप
दुः+तर = दुस्तर
निः+तेज = निस्तेज
निः+तार = निस्तार
नमः+ते = नमस्ते
अः/आः+क = स्
भाः+कर = भास्कर
पुरः+कृत = पुरस्कृत
नमः+कार = नमस्कार
तिरः+कार = तिरस्कार

6. यदि विसर्ग से पहले ‘इ’ या ‘उ’ हो और बाद मेँ क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है। जैसे–
इः/उः+क/ख/प/फ = ष्
निः+कपट = निष्कपट
दुः+कर्म = दुष्कर्म
निः+काम = निष्काम
दुः+कर = दुष्कर
बहिः+कृत = बहिष्कृत
चतुः+कोण = चतुष्कोण
निः+प्रभ = निष्प्रभ
निः+फल = निष्फल
निः+पाप = निष्पाप
दुः+प्रकृति = दुष्प्रकृति
दुः+परिणाम = दुष्परिणाम
चतुः+पद = चतुष्पद

7. यदि विसर्ग के बाद श, ष, स हो तो विसर्ग ज्योँ के त्योँ रह जाते हैँ या विसर्ग का स्वरूप बाद वाले वर्ण जैसा हो जाता है। जैसे–
विसर्ग+श/ष/स = (:) या श्श/ष्ष/स्स
निः+शुल्क = निःशुल्क/निश्शुल्क
दुः+शासन = दुःशासन/दुश्शासन
यशः+शरीर = यशःशरीर/यश्शरीर
निः+सन्देह = निःसन्देह/निस्सन्देह
निः+सन्तान = निःसन्तान/निस्सन्तान
निः+संकोच = निःसंकोच/निस्संकोच
दुः+साहस = दुःसाहस/दुस्साहस
दुः+सह = दुःसह/दुस्सह

8. यदि विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो विसर्ग मेँ कोई परिवर्तन नहीँ होता है। जैसे–
अः+क/ख/प/फ = (:) का लोप नहीँ
अन्तः+करण = अन्तःकरण
प्रातः+काल = प्रातःकाल
पयः+पान = पयःपान
अधः+पतन = अधःपतन
मनः+कामना = मनःकामना

9. यदि ‘अ’ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और पास आये स्वरोँ मेँ संधि नहीँ होती है। जैसे–
अः+अ से भिन्न स्वर = विसर्ग का लोप
अतः+एव = अत एव
पयः+ओदन = पय ओदन
रजः+उद्गम = रज उद्गम
यशः+इच्छा = यश इच्छा

हिन्दी भाषा की अन्य संधियाँ
हिन्दी की कुछ विशेष सन्धियाँ भी हैँ। इनमेँ स्वरोँ का दीर्घ का हृस्व होना और हृस्व का दीर्घ हो जाना, स्वर का आगम या लोप हो जाना आदि मुख्य हैँ। इसमेँ व्यंजनोँ का परिवर्तन प्रायः अत्यल्प होता है। उपसर्ग या प्रत्ययोँ से भी इस तरह की संधियाँ हो जाती हैँ। ये अन्य संधियाँ निम्न प्रकार हैँ–
1. हृस्वीकरण–
(क) आदि हृस्व– इसमेँ संधि के कारण पहला दीर्घ स्वर हृस्व हो जाता है। जैसे –
घोड़ा+सवार = घुड़सवार
घोड़ा+चढ़ी = घुड़चढ़ी
दूध+मुँहा = दुधमुँहा
कान+कटा = कनकटा
काठ+फोड़ा = कठफोड़ा
काठ+पुतली = कठपुतली
मोटा+पा = मुटापा
छोटा+भैया = छुटभैया
लोटा+इया = लुटिया
मूँछ+कटा = मुँछकटा
आधा+खिला = अधखिला
काला+मुँहा = कलमुँहा
ठाकुर+आइन = ठकुराइन
लकड़ी+हारा = लकड़हारा
(ख) उभयपद हृस्व– दोनोँ पदोँ के दीर्घ स्वर हृस्व हो जाता है। जैसे –
एक+साठ = इकसठ
काट+खाना = कटखाना
पानी+घाट = पनघट
ऊँचा+नीचा = ऊँचनीच
लेना+देना = लेनदेन

2. दीर्घीकरण–
इसमेँ संधि के कारण हृस्व स्वर दीर्घ हो जाता है और पद का कोई अंश लुप्त भी हो जाता है। जैसे–
दीन+नाथ = दीनानाथ
ताल+मिलाना = तालमेल
मूसल+धार = मूसलाधार
आना+जाना = आवाजाही
व्यवहार+इक = व्यावहारिक
उत्तर+खंड = उत्तराखंड
लिखना+पढ़ना = लिखापढ़ी
हिलना+मिलना = हेलमेल
मिलना+जुलना = मेलजोल
प्रयोग+इक = प्रायोगिक
स्वस्थ+य = स्वास्थ्य
वेद+इक = वैदिक
नीति+इक = नैतिक
योग+इक = यौगिक
भूत+इक = भौतिक
कुंती+एय = कौँतेय
वसुदेव+अ = वासुदेव
दिति+य = दैत्य
देव+इक = दैविक
सुंदर+य = सौँदर्य
पृथक+य = पार्थक्य

3. स्वरलोप–
इसमेँ संधि के कारण कोई स्वर लुप्त हो जाता है। जैसे–
बकरा+ईद = बकरीद।

4. व्यंजन लोप–
इसमेँ कोई व्यंजन सन्धि के कारण लुप्त हो जाता है।
(क) ‘स’ या ‘ह’ के बाद ‘ह्’ होने पर ‘ह्’ का लोप हो जाता है। जैसे–
इस+ही = इसी
उस+ही = उसी
यह+ही = यही
वह+ही = वही
(ख) ‘हाँ’ के बाद ‘ह’ होने पर ‘हाँ’ का लोप हो जाता है तथा बने हुए शब्द के अन्त मेँ अनुस्वार लगता है। जैसे–
यहाँ+ही = यहीँ
वहाँ+ही = वहीँ
कहाँ+ही = कहीँ
(ग) ‘ब’ के बाद ‘ह्’ होने पर ‘ब’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ह्’ का लोप हो जाता है। जैसे–
अब+ही = अभी
तब+ही = तभी
कब+ही = कभी
सब+ही = सभी

5. आगम संधि–
इसमेँ सन्धि के कारण कोई नया वर्ण बीच मेँ आ जुड़ता है। जैसे–
खा+आ = खाया
रो+आ = रोया
ले+आ = लिया
पी+ए = पीजिए
ले+ए = लीजिए
आ+ए = आइए।

कुछ विशिष्ट संधियोँ के उदाहरण:
नव+रात्रि = नवरात्र
प्राणिन्+विज्ञान = प्राणिविज्ञान
शशिन्+प्रभा = शशिप्रभा
अक्ष+ऊहिनी = अक्षौहिणी
सुहृद+अ = सौहार्द
अहन्+निश = अहर्निश
प्र+भू = प्रभु
अप+अंग = अपंग/अपांग
अधि+स्थान = अधिष्ठान
मनस्+ईष = मनीष
प्र+ऊढ़ = प्रौढ़
उपनिषद्+मीमांसा = उपनिषन्मीमांसा
गंगा+एय = गांगेय
राजन्+तिलक = राजतिलक
दायिन्+त्व = दायित्व
विश्व+मित्र = विश्वामित्र
मार्त+अण्ड = मार्तण्ड
दिवा+रात्रि = दिवारात्र
कुल+अटा = कुलटा
पतत्+अंजलि = पतंजलि
योगिन्+ईश्वर = योगीश्वर
अहन्+मुख = अहर्मुख
सीम+अंत = सीमंत/सीमांत