गुरुवार, 16 जनवरी 2014

सुलझन



पहले तो जिंदगी को
उलझने मत दो
गर उलझ जाये...
क्या हुआ कि उसमें पड़ जाय गिट्ठा ही
उसे तोड़ो-सुलझाओ
फिर जोड़ो एक धागे की भांति
उसके बाद इतना पीछे हटो
बाकी बचे धागे को खोलते हुए--
कि धागे में पड़ा गिट्ठा
ओझल हो जाय आंखों से
विश्वास करो
बहुत समय बचा लोगे तुम!
- राकेश कुमार श्रीवास्तव

रविवार, 5 जनवरी 2014

क्या लौटेंगे पिताजी

चारों ओर नज़र दौड़ाता हूं
पिताजी नज़र नहीं आते
आशा की एक किरण अभी भी जिंदा है..
आशा की एक धूंधलाती किरण इतने सालों में
अभी भी कायम है...
कि पिताजी लौटेंगे..
बताके नहीं जाने वाले पिता
आते थे... देर रात ही सही
दो दिन ही सही.. या फिर दो महीने ही सही..
लौट के जरूर आते थे.. हमारे अभावों के जंगल में
और कुछ न सही..
बहुत सारा प्यार ले आते थे पिता
उनका प्यार बहुत सच्चा था
अपने बच्चों के प्रति
कुछ कर न पाने के दर्द और कसक के साथ
उनका प्यार बहुत सच्चा था
इतने सालों में बता के नहीं जानेवाले पिता
क्या कभी फिर लौटेंगे हमारे जीवन में..?
- राकेश कुमार श्रीवास्तव

पिता

बरगद बन आंधियों से बचाते हैं पिता
ठेंगा ओले और धूप को दिखाते हैं पिता
भरसक चाहते हैं बच्चों पर न आए आफत कोई 
हर मुसीबत से लड़ना सिखाते हैं पिता
-राकेश कुमार श्रीवास्तव