पहले तो जिंदगी को
उलझने मत दो
गर उलझ जाये...
क्या हुआ कि उसमें पड़ जाय गिट्ठा ही
उसे तोड़ो-सुलझाओ
फिर जोड़ो एक धागे की भांति
उसके बाद इतना पीछे हटो
बाकी बचे धागे को खोलते हुए--
कि धागे में पड़ा गिट्ठा
ओझल हो जाय आंखों से
विश्वास करो
बहुत समय बचा लोगे तुम!
- राकेश कुमार श्रीवास्तव