गुरुवार, 19 जुलाई 2018

ए भाई जरा देख के चलो... को रचनेवाले गीतकार नीरज नहीं रहे..


-    राकेश कुमार श्रीवास्तव





 हाँ बाबूये सरकस है शो तीन घंटे का

पहला घंटा बचपन है.....दूसरा जवानी है.. तीसरा बुढ़ापा है..


याद आती है क्या आपको उपरोक्त पंक्तियां ....मैं आपको याद दिलाता हूं.. राजकपुर जो मेरा नाम जोकर के उस मंच पर इस लाइन को बड़े ही मार्मिक तरीके से मन्नाडे की आवाज के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं एक मशहूर कवि... कविताई और गीत रचनेवालों में अपनी एक हस्ती कायम करनेवाले ...जिनकी पंक्तियां हैं ये... हां ये वही गोपाल बाबू हैं जिन्हें हम कवि नीरज के नाम से भली भांति जानते हैं वे....अब अपनी जिंदगी का तीसरा घंटा भी पार कर चुके... जी हां... पद्मभूषण से नवाजे गये मशहूर कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज जी ने इस संसार से अपनी भूमिका अदा कर रुखसत ले लिया। उनका देहांत हो गया। आइये उनके जीवन व उनकी कीर्ति एवं कृतियों के बारे में हम आपसे कुछ चर्चा करेः-
उनका पूरा नाम था गोपालदास सक्सेना और अपने नाम के साथ उन्होंने 'नीरज' जोड़ लिया था। उनका जन्म जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ था। उनके पिता ब्रिजकिशोर सक्सेना ने उन्हें वर्ष की आयु में ही छोड़कर दुनिया से विदाई ले लिये। नीरज ने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। उन्होंने इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में उन्होंने टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में उन्होंने क्लर्क की नौकरी भी की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।
मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में ‘नई उमर की नई फसल’ के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुमप्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा’  बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।  किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये। नीरजजी का दिल्ली के एम्स में आज 19th जुलाई 2018 को निधन हो गया। 
उनकी कृतियाःं संघर्ष (1944) अन्तर्ध्वनि (1946) विभावरी (1948) प्राणगीत (1951) दर्द दिया है (1956) बादर बरस गयो (1957) मुक्तकी (1958) दो गीत (1958) नीरज की पाती (1958) गीत भी अगीत भी (1959) आसावरी (1963) नदी किनारे (1963) लहर पुकारे (1963) कारवाँ गुजर गया (1964) फिर दीप जलेगा (1970) तुम्हारे लिये (1972) नीरज की गीतिकाएँ (1987) 
उनको सम्मानः नीरज जी विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार से भी नवाजे गये थे। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री सम्मान 1991 में दिया गया था। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा 1994 में उन्हें यश भारती सम्मान के साथ एक लाख रुपये भी दिये गये थे। उसके बाद भारत सरकार द्वारा पुनः 2007 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से भी नवाजा गया। 
फिल्म फेयर एवार्ड के तहत नीरज जी को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये सत्तर के दशक में लगातार तीन बार पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये पुरस्कृत गीत हैं 
1. 1970 की फिल्म चन्दा और बिजली का गीत ‘काल का पहिया घूमे रे भइया!
इस गीत का अंतिम पैरा जरा देखिएः
कर्म अगर अच्छा है
तेरा क़िस्मत तेरी दासी है
दिल है तेरा साफ़ तो प्यारे
घर में मथुरा काशी है
सच्चाई की राह चलो रे
जब तक जीवन प्राण चले
राम कृष्ण हरि ...
2. 1971 की दशक में आये इस गीत से हममें से कौन भला वाकिफ नहीं हैः-
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं ...
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं  और 
3. 1972 में आयी फिल्म मेरा नाम जोकर का वह अविस्मरणीय गीत ए भाई जरा देख के चलो...
बताया जाता है कि बीते मंगलवार को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। उन्हें आगरा के लोटस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।  हालांकि बुधवार को उनकी तबीयत में सुधार की भी खबर मिली लेकिन अंतत: आज उनका निधन हो गया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गोपालदास को सांस लेने में तकलीफ हुई थी जिसके कारण उन्हें पहले कमलानगर स्थित साईं अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां कोई सुधार न होने पर उन्हें लोटस हॉस्पिटल लाया गया।
गोपाल दास नीरज की वह पंक्तियां जरा देखें और अगर सुने हैं तो फिर से गुनगुना लें.. हमने तो गुनगुनाया.....
... तू जहाँ आया है वो तेरा
घर नहींगली नहींगाँव नहीं
कूचा नहींबस्ती नहींरस्ता नहीं
दुनिया हैऔर प्यारे 
दुनिया ये सरकस है
और सरकस में
बड़े को भीछोटे को भीखरे को भी
खोटे को भीदुबले भीमोटेको भी
नीचे से ऊपर कोऊपर से नीचे को
आना-जाना पड़ता है
ए भाई जरा देख के चलो...
कवि गोपाल दास सक्सेना नीरज’ अपनी उपरोक्त पंक्तियों की एक लाइन ऊपर से नीचे को नीचे से ऊपर को आना-जाना पड़ता है ...ये बातें सभी जानते हैं...मगर फिर भी उन्हें लिखने के साथ उन पंक्तियों को जीना मामूली बातें नहीं थीं... खैर नीरज जी जो गति तोरा सो गति मोरा.... जाना तो सबको है... मगर नाम कमाकर जाना मामूली बात नहीं... आपकी तरह...
मेरी ओर से नीरज जी आपके लिये कुछ पंक्तियां...

तुम मरे नहीं नीरज...

तुम मरे नहीं और ना ही तुमने जन्म लिया
तुम तो तीन घंटे के दर्शक थे इस दुनिया के
और देखो ना आजकल तो लोग
दो घंटा तो दूर
पहले घंटे में ही निकल पड़ते हैं
लेकिन तुमने तो ईमानदारी से
तीसरा घंटा भी पूरा करके रुखसत लिया..
तुम चले गये...
चलो हम निगेटिव नहीं सोचें
हम ये सोचते हैं कि तुमने कहा
कि आना-जाना पड़ता है...
फिलहाल तुम ये बताओ
कि तुम फिर से कब आने की तैयारी कर रहे हो
इस दुनिया के तीन घंटे का
पुनर पुनर दर्शक बनने......!!!!
और सच्चा दर्शक बनकर
फिर से उनपर अपनी सच्ची प्रतिक्रिया देने...
अपनी विधाओं के माध्यम से
क्या तुम फिर आने वाले हो?????
क्योंकि सच्चे दर्शक को ही अधिकार होता है..
तीन घंटे तक देखने का
उसे समझने का
और जीवन के संघर्षों को पार करते हुए
उसके नवीनतम रहस्यों को
उजागर करने का
क्योंकि ईश्वर मजबूर है और रहेगा
तुम जैसों को सहर्ष मोहलत देने का
पूरा पूरी तीन घंटे का...
-    राकेश कुमार श्रीवास्तव