बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

अपनी गलती

(कहानी)


-  मुकुल कुमार सिंह चन्देल


शहरी वातावरण में एक परिवार था मात्र चार भाईयों का।चारो आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे।वैसे चारो हीं पढ़े-लिखे थे।माता-पिता गुजर चुके थे।चारो भाई बेकार नहीं थे।उनका उपार्जन एकदम कम नहीं तो ज्यादा भी नहीं थी।कभी किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।पैतृक सम्पत्ति कहकर पाँचिल से घिरा थोड़ा सा जमीन जिसमें तीन-चार बड़े-बड़े फलधारी पेड़ एवं रहने को एक बड़ा हालनुमा कमरा।
छोटी-छोटी बातों पर चारो भाई आपस मे उलझ पड़ते।उनमें मार-पीट तो नहीं होती थी परन्तु उनके रोज-रोज के तर्क-वितर्क से पड़ोसीगण परेशान।उनका तर्क-वितर्क ऐसी सीमा पर पहुंच जाती थी कि उन्हें शांत करने के लिए पड़ोसियों को आना पड़ जाता था और वे समझा-बुझाकर चले जाते। कई दिन तक चारो भाई ऐसे ढंग से रहते कि लोगों को लगता था शायद राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न आधुनिक इण्डिया में आ गये हो।लेकिन रामायण का आर्यावर्त और आधुनिक इण्डिया मे जमीन-आसमान का अन्तर है।कई दिन भातृत्व-प्रेम, उसके बाद बेताल राजा विक्रम का कंधा छोड़ कर गायब तथा पेड़ पर जा बैठता था।पड़ोसी तंग आ गये उनके एल ओ सी के विवाद से और चारो भाईयों को उनके हाल पर छोड़ दिया।परन्तु सहने की भी सीमा होती है।बस एकदिन पड़ोसियों का गुस्सा फुला हुआ गुब्बारा की तरह फट गया और गुब्बारा फटने के बाद जो होता है-चारो भाईयों की अच्छी तरह से कुटाई कर दी गई।चारो भाई कुटाई खाने के बाद भी अपने को सुधारा नहीं बल्कि अब एक-दूसरे को दोष देने लगे कि तुम्हारे कारण हीं हमलोगों की पिटाई हुई।
दिन-महीना गुजरते गये।चारो भाईयों मे एक परिवर्तन देखने को मिला, अब वे सभी एक-दूसरे के सामानों को फेंक दिया करते थे और जैसे हीं अनुपस्थित भाई घर आता तो अपने सामानों को बाहर फेंका देख बाकी पर चीखना-चिल्लाना शुरू कर देता।लेकिन बाकी सारे भाई मौनी बाबा बन जाया करते थे। कब तक चीखोगे-चिल्लाओगे? आखिर चिल्लानेवाला कोई प्रत्युत्तर न पाकर शांत हो जाता। अवसर की तलाश मे रहता और जैसे हीं मौका मिलता अनुपस्थित भाईयों के सामानों को फेंक दिया करता। इस तरह से उनकी समस्या दर समस्या जटिल होने लगी क्योंकि बाहर फेंक दिये गये वस्तुओं की संख्या कम होती जा रही थी।पहले तो चारों भाई ने इसे बड़े हल्के ढंग से लिए पर वस्तुओं की कम होती संख्या ने उन्हें सोचने को बाध्य कर दिया।चारो भाई परेशान।पहले तो आपस में बातें भी होती थी जिससे मन हल्का रहता था पर अब वे केवल एक-दूसरे को चबा जानेवाली नजरों से देखते हैं।कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था।क्या करे-क्या न करे और भी कुछ दिन कट गये।चारो भाईयों का घर में रहना दूभर हो गया।लोग बाहर की अशांति से बचने के लिए घर आता है और यहाँ तो घर में घुसते हीं उल्टियां आने लगती है।
एक दिन उनमें से जो बड़ा भाई था, अपने एक खास मित्र के सामने अपना दुखड़ा रोया और उससे परामर्श मांगा। मित्र महोदय चुटकियां बजाते हुए कहा-"अरे भाई, यह भी कोई समस्या है।बस तुम एक पत्नी ले आओ।"
"पत्नी क्या कर लेगी? उसके आ जाने से तो मेरी अशांति और बढ़ जायेगी।"बड़े भाई ने कहा,
"अबे मूरख,जिस तरह लोहा लोहे को काटता है उसी तरह  चारो भाईयों की अशांति को भगाकर स्वयं शांति बन बैठ जायेगी। "मित्र ने दार्शनिक की भांति कहा,
"लेकिन यार माता-पिता तो जीवित रहे नहीं, फिर मैं पत्नी कहां से लाउंगा?"बड़े ने चेहरा लटकाते कहा,
"यार तुम वाकई मे चौपटराम हो।अच्छा-भला दिखते हो खाते-कमाते हो, पैतृक सम्पत्ति भी है।ऐसे पति को पाकर भला कौन पत्नी खुश नहीं होगी।तुम्हारे दफ्तर मे हीं है।मैं उनसे बात करुंगा।"मित्र ने कहा,
"वो तो ठीक है पर हमारी समस्या क्या वह दूर कर पायेगी।"बड़े ने अपनी चिंता पुनः प्रकट किया,
"देख मेरे भाई, पत्नी हीं शांति है क्योंकि वह अपने लिए शांति की स्थापना करती है भले हीं वह दूसरे के लिए अशांति क्यों न बन जाय।" मित्र ने सांत्वना दिया।
मित्र के समझाने पर बड़े भाई को आशा की किरण दिखाई दी।घर पहुंचकर बाकी भाईयों को बुलाया।भाईयों के स्थान पर कुत्ते, बिल्लियां,बिलायती चूहे तथा कबूतरों का आगमन हुआ।बड़े भाई ने झट से अपनी नाक पर रुमाल बाँधा और कमरे के अन्दर कैबरे डान्स करने लगा।कभी इस कोना तो कभी उस कोना।उसके डान्स के साथ अर्केस्ट्रा के संगीत-कें-s-sकें,गर्र-s-s,कींच-कींच तथा डैनों के फड़फड़ाने वाली ध्वनि का मिश्रण सुनाई देने लगा।एक पल के लिए बड़े का डान्स रुका तो पलकें झपकाते हुए देखा कि वह अकेला कैबरा डान्सर नहीं बल्कि और भी तीन हैं ।सबके नाक पर रुमाल बँधी है।कोई कुत्ता पर झपट रहा है तो कोई बिल्ली पर।कोई बिलायती चूहों को पकड़ने की कोशिश कर रहा है तो कोई कबूतर पकड़ रहा है।मेरा कुत्ता, मेरी बिल्ली, मेरे बिलायती,मेरे कबूतर का सप्तलहरी उस हालनुमा कमरे में गुंज रहा था।जब संगीत की स्वरलहरी थमी,चारो भाई आमने-सामने खड़े होकर हांफ रहे थे।कमरे की स्थिति बड़ी भयंकर। चारो भाई चित्कार कर रहे थे-मै तुझे जिन्दा नहीं छोड़ुंगा तुने मेरे डागी की टांग ऐंठी है, मैं भी तेरी टांग न ऐंठा तो एक बाप का बेटा नहीं, आज मैं भी तुझको उठाकर बाहर फेंकुंगा जैसे मेरे बिलायती को फेंका है,अरे तुमलोग कितने निष्ठूर हो जो शांति के प्रतीक कबूतरों पर अत्याचार करते हो।चुंकि चारो के नाक पर रुमाल बँधी थी सो कौन क्या कह रहा है, स्पष्ट समझ हीं नहीं आ रही थी।
               अफरा-तफरी कमरे की और टेपरिकार्डर की तभी जाकर थमी जब एक-एक कर चारो उस कमरे से बाहर निकल आये।बाहर झिंगुरों की आवाज आर डी बर्मन की धून सुनाने लगा तो मच्छरों ने चारो भाईयों को सरोज खान का डान्स क्लास आरम्भ करवा दिया वन-टू-थ्री-फोर।उसी स्थिति में चारो ने अपनी-अपनी नाक पर से रुमाल हटाया।बड़े भाई भी बिलकुल उसी अंदाज में वन-टू-थ्री-फोर कहते हुए बोला-"सुनो मेरे अनुजों,कान खोलकर सुनो। मैंने रोज-रोज के आपसी झगड़े को दूर भगा शांति लाने का निर्णय लिया है और जानना चाहता हूं कि तुमलोग क्या करोगे?"
"शांति!" तीनों भाई चौंक उठे। मानो आसमां टूट पड़ा हो।
"हाँ, शांति। तंग आ गया हूं रोज-रोज की अशांति से।"बड़ा तीनों अनुजों को पढ़ने का प्रयास करता है।आखिर आक्रमण से बचना भी है।
"परन्तु आप शांति को लायेंगे कहाँ से?" मझले भाई ने सर खुजलाते हुए कहा।
"वो व्यवस्था मैं कर चुका हूं।"बड़े का प्रत्युत्तर था।
तीनों भाई आपस में एक-दूसरे का मुँह देखने लगे और बड़ा तो एकदम खुश क्योंकि आज पहली बार ऐसा हुआ है जब तीनों भाई उसके सामने गुंगे बन कर खड़े थे, नहीं तो अब तक उसके नाक का पसीना होंठ पर आ गया होता।कुछ देर तक अनुजगण बूत बने रहे।अंत मे छोटे ने उस चक्र को तोड़ा।
"ठीक है अग्रज आप शांति को अवश्य लाओ पर हम कहाँ जायेंगे? "
"कहीं भी जाओ, मुझे उससे कोई मतलब नहीं है।"बड़े ने लापरवाही से कहा क्योंकि वह समझ चुका था कि पंछी जाल में फंसकर छटपटा रहा है।
"इसका मतलब!" तीनों भाई एक बार फिर आसमान से खजूर पर आ गिरे।
"हाँ।वही जो तुमलोग समझ रहे हो।"बड़ा भाई का हृदय प्रसन्न।
इसके बाद कई दिनों तक कोई खट-पट नहीं सुनाई दी। सुनाई देगा तो कैसे! कच्ची सब्जियों को भुंजने के पहले गरम कड़ाही में तेल गरम होगा और गरम तेल में फोरन जलेगा तब जाकर सब्जी कड़ाही में गई की छन्न.......छ।बड़ा भाई शांति की खोज में व्यस्त है।दफ्तर वाली से बातें हुई पर उसने जो शर्त रखी वह बड़े की गले की हड्डी बन गई है।जमीन पहले बेचो फिर बात होगी और तीनों अनुज बेसब्री से इन्तजार करने लगे कि आगे क्या होता है?परन्तु यह इन्तजारी पुनः युद्ध क्षेत्र में बदल गया।इस बार की महान युद्ध में कुत्तों की अनदेखी की गई।बड़ा अटपटा लगता है दो पैर वालो ने उन्हें उनके पद से मुक्त कर दिया और स्वयं युद्ध की कमान को सम्हाल लिया।इस बार हीं लग रहा था ,जैसे चारों ओर समानता छाई है।पशु एवं मनुष्य में कोई फर्क नहीं है।भोजन, वस्त्र, आचार-आचरण सब एक समान।तभी तो इस बार के युद्ध में सेनापतियों की महानता झलक उठी।इसके पूर्व जो युद्ध हुए थे उसमें केवल शब्दों का प्रहार होता था पर अब थप्पड़-लात-घुंसों-धक्के देना तथा व्यक्तिगत चरित्र-चित्रण का जमकर प्रयोग होने लगा।छोटा अनुज थोड़ा शारीरिक रूप से दुर्बल था।बस एक दिन मँझले का एक हाथ पड़ा कि छोटे का शर्ट और पैंट इतनी ढिली हो गई कि बेल्ट लगाने के बाद भी पैंट शर्ट का साथ छोड़ दिया कर देती थी।छोटा बार-बार उसे कसने का प्रयास करता पर असफलता हीं हाथ लगी।
आज उसने इस पार-उस पार करने का मन बना लिया था।सो पहुंच गया अशांतिनगर थाना। थाने की लाल रंग की बिल्डींग देखकर हीं एकबार तो छोटे का मन किया लौट जाए पर मँझले का हाथ याद आते हीं गाल सहलाने लगा,जैसे अभी-अभी थप्पड़ खाया हो।धड़कते हृदय के साथ थाने के दरवाजे को पार किया। दरवाजे को जाती बाहर रास्ते पर तीन-तीन -चार लोगों का झुंड अलग-अलग स्थानों पर खड़े होकर खुसर-पुसर कर रहे थे तो तीन पुलिस जीप,सात-आठ बाईक दाँत चियारते हुए छोटे का स्वागत किए और कह रहे थे-धन्य-धन्य हुआ यह थाना जो आपके कदम पड़े यहाँ।आज से बजेगा तुम्हारे सर का तबेला और तुम गाओगे जी हुजुर का गाना।मुख्य दरवाजे को पार कर छोटे ने अन्दर कदम रखा, दाँये-बाँये सुन्दर-सुन्दर फूल खिले पौधों की क्यारियां देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ।सौभाग्य से सामने हीं संतरी बन्दूक लिए खड़ा दिखा।उसकी ए वन टनाटन खाकी वर्दी ने छोटे की आत्मा में हड़कंप मचा दिया।एक बार फिर मन किया कि लौट जाए पर मौका हीं नहीं मिला क्योंकि बड़ा सा तोंदवाला हवलदार उसके सामने आ धमका।साक्षात यमराज की तरह हाथ में डोरी लपेटे शायद कुछ पल मे उसकी आत्मा को निकाल लेगा।पर ऐसा नहीं हुआ।हवलदार ने गम्भीर आवाज मे पूछा-"क्या बात है, अन्दर आते-आते लगता है लौट जाना चाहते हो।" किसी तरह छोटे ने दोनों हाथों से साहस को कसकर पकड़ा, गला सूख गया था।सर चक्कर देने लगा। हाँ-ना करने लगा।हवलदार उसकी स्थिति को ताड़ गया।इसलिए पुलिस का कर्तव्य का पालन किया।कहा-"लगता है पहली बार आये हो।"
"जी हाँ।"
"घबड़ाओ मत। इत्मिनान के साथ अपनी शिकायत मेजो बाबू(सेकेंड आफिसर)को बताना।"
"उसी के लिए तो आया हूं।"
"ठीक है उस दरवाजे के अन्दर चले जाओ।हम पुलिसवाले अच्छों-अच्छों की हालत पतली कर देते हैं।"
"क्या मतलब!मैं मोटा नहीं हूं।"
"अब ज्यादा मतलब-वतलब मत करो।चुप-चाप अन्दर जाओ।"
"ठीक है-ठीक है।जा रहा हूं।" इस समय छोटे को लग रहा था कितने देर मे यहाँ से भागे पर कदम चिपक गया था
सामने तीन दरवाजा।प्रथम के दाँयी ओर दिवाल पर काठ की पट्टी लगी थी जिस पर आफिसर इन कमाण्ड लिखा था।बीच के दरवाजे पर सात-आठ लोग लोग पंक्तिबद्ध खड़े थे।सबके हाथों में कागजी पन्ने। छोटा उन्हीं लोगों के पीछे जा खड़ा हुआ।कई मिनट गुजर गए, कई और लोग उसके पीछे आ खड़े हुए।एक-एक करके सभी कागजी पन्ने आगे बढ़ते जा रहे थे।सामने टेबल पर एक युवा अधिकारी जिसके कंधे पर एक तारा एक रिबन के साथ शोभा दे रहा था, कागजों को देखने में व्यस्त।सामने रखे कागज में कुछ लिखा है उसे पढ़ लेता था तत्पश्चात कागज लेकर आने वाले से हजार तरह का प्रश्न।अब भगवान हीं जानता होगा कि कागज में क्या लिखा है उसकी समझ में आ रहा है या नहीं।क्योंकि वही सबसे पूछ रहा था-क्या काम है, क्या करना होगा? कागज लेकर आने वाला हीं बता रहा था कि"यह भेरीफिकेशन है, यह लाईसेन्स निकालने हैं, मोड़ पर मीटिंग है"इत्यादि।प्रत्युत्तर सुनने के बाद युवा अधिकारी कागज पर हस्ताक्षर करता और सील-मुहर लगाकर एक कापी रख लेता तथा रीसिव कापी वापस लौटा देता था। छोटे की बारी आयी।उसके पास तो कुछ भी नहीं था।वह अधिकारी पूछा-"क्या काम है?"
"जी मुझे शिकायत लिखवाना है।"छोटे ने हकलाते हुए कहा,
"बड़ा मूरख है यहाँ केवल अप्लिकेशन ली जाती है।"
"जी मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है।" युवा अधिकारी की घुड़की सुनकर छोटे की गले से आवाज भी सही ढंग से निकल पाई।
"जाओ उस दरवाजे पर मेजो बाबू बैठे हैं ।"
"उस दरवाजे का मतलब-आफिसर इन कमान्ड?"
"क्यों मेरा माथा गरम करता है।बाँये-बाँये-बाँयी तरफ.........।"युवा अधिकारी आँख लाल-पीली करते हुए कहा। छोटा हकचका गया। वहीं के पंक्ति का एक व्यक्ति छोटे के कंधे पर हाथों से थपकी दी।पीछे मुड़कर छोटे ने उसे देखा।उस व्यक्ति ने बाँये ओर बैठे हुए लोगों की ओर इशारा किया।छोटा किसी तरह वहाँ से निकल बाहर बैठे हुए लोगों की पंक्ति के अंतिम मे जाकर बैठा।उसके आगे वाले ने कहा-"मेरे बाद भी और दो लोग हैं।"छोटे ने उत्तर मे कहा-"ठीक है।मेरा नम्बर उन दोनों महानुभावों के बाद हीं रहेगा।"अबतक छोटा सहज हो चला।बैठे हुए लोगों को एकबारगी देखता है,सबको अपनी ओर देखता हुआ पाता है।क्या मैं कोई विशेष जन्तु हूं जो सभी मुझे हीं देख रहे हैं।लगता है पहली बार यहाँ आने वाले के साथ ऐसा हीं होता है।मन मे ऐसे विचार उठे। अपनी कलाई घड़ी को देखा। गहरी साँस ली और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा।लेकिन सामने जो पहुंचा वह तो सामने जाकर चिपक जाता था तथा उस समय एक-एक पल कटना मुश्किल लग रहा था। लगभग दो घंटे लगे मेजो बाबू के पास पहुंचने में। इतने समय तक बैठे-बैठे शरीर जैसे टूटने लगा था। जम्हाई आ रही थी बार-बार, आँखें जलने लगी, पलकें नींद से भारी हो आई थी आवश्यकता थी मात्र थोड़े से स्थान की और अति शिघ्र पलकों को झपका कर नाक बजा लेता। कभी-कभी कुछ पल के लिए पलकों को बन्द कर लेता था ।इससे आँखों और मनो-मस्तिष्क को आराम मिलता था।वहाँ आये प्रायः सबकी एक हीं स्थिति थी।कोई -कोई तो दो-तीन बन्धु-बान्धव को साथ लेकर आये थे।फिस-फिस्स कर बातों मे सर खपाये बैठे थे।आखिर सभी अपनी-अपनी ढंग से तैयारी करके आया था।जब छोटे की बारी आई --
"नमस्कार सर।"
"नमस्कार। बैठ जाओ।"
"जी।धन्यवाद।" सामने बैठा हुआ आफिसर मध्यव्यस्क।वर्दी टिप-टाप।कन्धे पर दो तारा एक रिबन,आँखों पर चश्मा चढ़ा हुआ तथा चश्मे और आँखों के बीच के फाँक से सबको देख लिया करता था।सामने रिपोर्ट लिखने वाली रजिस्टर के पन्नों को उलझा हुआ कहता है--
"अरे भाई विश्वास दा कहाँ गया।लगता है आज चाय-वाय नहीं पिलायेगा क्या? "छोटा को लगता है शायद उसी को कहा जा रहा है, इसलिए बड़ा विनम्र होकर बोला-
"सर मैं विश्वास नहीं सुभाष हूं।"
"तुम चुप रहो तो।मैं तुम्हें क्यों कहुं, मुझे क्या प्रेस वालों की स्टिंग आपरेशन का शिकार थोड़े हीं होना है।पता नहीं यहाँ रिपोर्ट लिखवाने वालों में कोई रिपोर्टर हो।फिर शुरू हो जायेगी मेरी नौकरी की टानाटानी एवं मेरी पत्नी व बच्चों की सारी फूटानी गायब।" इस भाषण से छोटा सिटपिटा गया। आफिसर पुनः बोला--"अब जरा जल्दी से बको,क्या लिखवाना है?"
"सर मेरे भाई मुझे घर से अलग करने की तैयारी कर रहें हैं।"
-"कितने भाई हो?"
-"चार।"
-"माँ-बाप जीवित हैं क्या?"
-"नहीं।"
-"चारो भाई एक साथ रहते हो?"
-"हाँ।"
-"तो फिर बँटवारा क्यों नहीं कर लेते?"
-"बँटवारा तो हमारी समस्या है हीं नहीं।"
-"तो।परेशानी क्या है?"
"वही तो कहने आया हूं।"
"बात है कि हमलोग पहले भी लड़ते थे पर अब हम मार-पिट करने लगे हैं।"
"अच्छा तो आपलोगों का डेवलपमेंट हुआ है।------अरे विश्वासदा,कहाँ मर-खप गया।बैठे-बैठे कमर दर्द करने लगा है।"
एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया चाय-बिस्कुट के साथ।प्लेट में बिस्कुट सजाया, फिर कप में ढालते हुए बड़बड़ा रहा था--"लगता है मैं बैठा रहता हूं। ये ला-वो ला,पानी पिला, सिगरेट ला-पान ला करता रहता हूं।घर पर पत्नी की झिड़की-यहाँ आप लोगों की।" चाय रखकर चला जाता है और आफिसर चश्मे के फाँक से उसकी पीठ को देखता रहता है और छोटा उस आफिसर को।पता नहीं क्या पूछ बैठेगा? दो-तीन चाय की चुस्कियाँ लेने के बाद आफिसर भी बड़बड़ाया-"अवश्य आज फिर इसकी पत्नी इसे निकम्मा बोली होगी।इसलिए विश्वास का पारा गरम है।" छोटा को लगा आफिसर शायद उसी से कह रहा है और कहा--
"हो सकता है आप ठीक कह रहे हैं।"
- क्या मैं ठीक कहता हूं आफिसर को अपनी पूर्व स्थिति का आभास हो आता है।
-वही जो अभी आपने कहा। छोटा नकली हँसी हँसते हुए कह।आफिसर एकबारगी छोटे को देखा और अपने अंदाज में कहा--आप चुप रहेंगे या कुछ कहेंगे भी?
-हाँ-हाँ, क्यों नहीं।
-आपका बड़ा भाई क्या करता है?
-जी एक एडवरटाईजिंग कम्पनी में एकाउंटैंट है।
-आप क्या करते हैं?
-कमिशन एजेंट।
-बाकी भाई क्या करते हैं?
-मेजदा सेल्समैन है और सेजदा भेटनरी अस्पताल में क्लर्क है।
-सभी लोगों की पत्नियां और बच्चे कितने हैं?
-साहब, हम चारों हीं अविवाहित हैं।
-तो तुमलोग शादियां क्यों नहीं कर लेते?
-कर लेंगे सर। छोटा शर्माते हुए कहा।
-कब करोगे?बुढ़ापे में अपाहिज बच्चों के बाप बनोगे?
-जी हाँ-जी नहीं। छोटा सकपका गया।
-झगड़ते हो किस बात पर?
-सर,हम जिस कमरे में रहते हैं उसमें दुर्गन्ध आती है।
-उसमें खिड़कियां हैं या नहीं और फिर कमरा तो साफ-सुथरा रखते हीं होगे।
-कौन साफ करेगा?पाँच-पाँच बिल्लियां जो है न।
-बिल्ली!
-जी सर। बिल्ली हीं नहीं , दो-दो कुत्ते भी हैं।
-अच्छा-अच्छा, तब तो चूहे भी होंगे!
-अरे वाह! आपको कैसे पता चला?
-क्योंकि चूहे-बिल्ली का खेल खेलते पुलिस में तीस वर्ष जो गुजार दिया हमने।
-ऐसा तो आपसे हीं संभव हो पाया।
-शट-अप। मक्खन लगाते हो!डाँट लगाई आफिसर ने।
-सारी सर। गलती हो गई।
-ठीक है-ठीक है, सुनो।
-जी साहब।
-कमरे की खिड़कियां खोलकर रखो।दुर्गन्ध नहीं आयेगी और हाँ बड़े भाईयों से कहो कि कुत्तों, बिल्ली-चूहों की संख्या एक-दो से ज्यादा न हो।समझे।
छोटा अपने मुँह पर रुमाल रख सिसकने लगा।आँखों से नदी की धारा बहने लगी।यह देख आफिसर को आश्चर्य हुआ।
-अरे-रे-रे,आप तो रोने लग!
-कुछ नहीं।आपने खिड़की-खिड़की, खोलकर रखने की बात कही न।
-हाँ, तो इसमे बुराई क्या है?
-बात है सर, कि-खिड़कियां खुली रखने से तो मेरे कबूतर-मेरे कबूतर।
-कबूतर! तो क्या उस कमरे में कबूतर भी हैं।
-जी श्रीमान। वो सारे उड़ जायेंगे।छोटा हिचकियां भर-भर रोने लगा।
-अच्छा तो कुत्ता तुम्हारा बड़ा भाई, बिल्ली मेजदा, चूहा सेजदा और कबूतर आप-बड़ी अच्छी बात है। तब तो आपस मे मार-पिट हीं क्यों रक्त की नदियां बहनी चाहिए।
-क्या मतलब?
-अबे गधे, मतलब मैं तुम्हे समझाता हूं। ओ रायबाबु, जरा रुल तो लाकर देना।
-सर रुल क्यों मंगवा रहे हैं? छोटे को रुल का नाम सुनकर हीं पसिना आ गया।
-तब से आकर मेरा समय नष्ट किया। अपनी गलती-गलती नहीं। पर भूचाल औरों की गलती पर......छोटे के गाल पर थप्पड़। छोटा गाल सहलाता हुआ उठ खड़ा हुआ।
- अब से ऐसा न होगा।
-इतना हीं नहीं,तुम अपनी कबूतर पहले हटाओ फिर आना। फिर हम तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे।
-जरुर,जरुर। हमें अपनी कमी को पहले हीं दूर कर लेते तो यह नौवत न आती।
बाहर बैठे हुए लोग छोटे को बाहर निकलते हुए देखता है जैसे सर्कस का जोकर अपना खेल दिखाकर वापस लौट रहा है।
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