शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

अच्छा हो या बूरा बात करते रहिए

पुरानी बातों को भूलकर बात करने की कोशिश करनी चाहिए। अपनों से हम कब तक मुंह मोड़े रह सकते हैं? अपनों को यूं नहीं छोड़ा जा सकता। हमें अच्छी बातों को याद करनी चाहिए। स्वयं में या अपने बच्चों में नफरत की भावना बोकर हमें क्या मिलेगा? सोचिए जरा! कौन कब इस दुनिया से रुखसत हो ले कोई नहीं जानता। तो फिर हमने कभी सोचा क्या कि हम अपने पीछे अपने बच्चों के लिए क्या छोड़े जा रहे हैं? क्या सिर्फ नफरत के बीज? ऐसा करके हमें कुछ हासिल तो हुआ नहीं मगर एक चीज जरूर हुआ और वह कि हमारे अहंकार का पोषण। जो हमारी समझ रूपी चक्षु पर पर्दा डालकर हमें सच्चाईयों से दूर रखता है। और कभी भी आगे नहीं जाने देता और हमसे सिर्फ अन्य के नजरिये के तहत वह करवाता है जो अगले की मंशा है और हमें मौलिक से रूढ़ीवादिता की ओर ढकेल देता है जिससे कभी किसी का फायदा नहीं हुआ। अगर ज्ञान का अहंकार है तो आप संपूर्ण ज्ञानी कभी नहीं हो सकते। कान है मगर उसमें पर्दा भी है इसलिये नहीं कि हर बात को हम दूसरे की दृष्टिकोण से सुने व समझें बल्कि उस पर्दे के माध्यम से हम हर बात को चाय की तरह छानकर अपने विचार और दृष्टिकोण से समझें तो पता चलेगा कि हम जीवन में बहुत कुछ खोते-खोते बच गये। ऐसा नहीं होने से हम पाते-पाते रह गये इसका अफसोस करने से भी कोई फायदा नहीं होगा। हम कब चेतेंगे..जब सबकुछ हाथ से छुट जाएगा तब? हम क्या कभी एक मत, एकानंद का भोग नहीं कर सकते? एकांतवाद अच्छी चीज है अगर ये भगवान या स्वयं से साक्षात्कार के लिए हो तो जन्म-मरण के बंधन से मनुष्य को निवृत्ति मिल सकती है। मगर अपनों से एकांतवाद करने से क्या फायदा जब आप परायों के साथ तो महफिल कर रहे हैं और अपनों को छोड़े हुए हैं। इससे न तो आपके मन का विकास हुआ और न ही आपके विचार का। ढूंढने और पता करने की कोशिश कीजिए ....क्या पता आपके लिए आपका कोई अपना कराह रहा हो, कलप रहा हो और आपके प्रति अपनी कल्पनातीत आशाओं में आपको अपने करीब रहने का ख्वाहिश रख रहा हो। इसे आप कब समझेंगे। बात कीजिए। बात करने से बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान हो जाता है। अहंकार को छोड़ प्रेम की तरफ बढ़ने की एक नहीं हजार कोशिश कीजिए। आपको महसूस होगा कि आप जिस आनंद की तलाश में थे वह यही है। और आप जिस वजह से अशांत थे उसका भी कारण वही था। अगर आप छोटे हैं और कोई बड़ा आपसे बात नहीं कर रहा है तो अपनी सोच और उदारता की परिधि बढ़ाईये और बड़े की मुंह में उंगली डालकर बात कीजिए। आपको पता चलेगा कि वह आपसे दो टूक बात करने के लिए हर पल कितना बेचैन था और आपके बात नहीं करने पर दुखी भी। बात करके देखिए आपको आनंद मिलेगा। अगर छोटा बात नहीं करता है तो हम उसके मुंह में उंगली डालकर बात कर सकते हैं क्योंकि वह छोटा है और आप बड़े ... आप महसूस करेंगे कि वह छोटा आपकी एक आवाज सुनने के लिए आपको कितना मिस कर रहा था। क्या हमें नहीं लगता कि हमारी बातचीत सिर्फ बर्थडे, एनीवर्सरी एवं किसी खास ओकेशन तक ही सीमित होकर रह गई है? आनंद बाहर ढूंढने से नहीं मिलता और न ही इसके लिए किसी खास ओकेशन की जरूरत है। आनंद हर क्षण किया जा सकता है। हमें तो कभी-कभी पढ़े-लिखे उन गंभीर तबके के लोगों से वे अनपढ़, गंवार लोग ज्यादा समझदार लगते हैं जिन्होंने आपस में मारपीट की, गाली-गलौज किया शाम होते-होते कंधे से कंधा मिलाकर चल दिया। तो हम भी चेतें तो अच्छा है। कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात सोचें, कंधा देने का बात कभी नहीं सोचें। हर जगह ज्ञान काम नहीं करता। जिन बच्चों को हम लालन-पालन करते हैं हम उन्हीं से बहुत कुछ सीख सकते हैं.. क्योंकि हमने उन पर कभी हाथ उठा दिया उनको रूला दिया लेकिन क्या कमाल की बात है न कि वे थोड़े देर में कैसे सहज हो हमसे हंसने -बोलने लगते हैं....तो फिर अपनों को अपने करीब लाने के लिए हम क्यों नहीं एक सहज बालक की भूमिका में आ सकते हैं? बच्चे हमें बहुत कुछ सीखा सकते हैं। published- in Bharatmitra Hindi Daily.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें