नाई दिलाता है याद
मुझे
मेरी मां की
मेरे पिता की
दीदी की
मेरे भईया की
....जब वह (नाई)
बड़ी तल्लीनता से
मेरी दाढ़ी बनाने के बाद
मेरा मुंह तौलिये से पोंछता है
ठीक उसी समय याद आती है मुझे
दीदी जो इसी प्रकार
मेरे स्कूल जाने के पहले
मेरे नहा लेने के बाद गमछे से मेरा
सर व मुंह पोंछती थी
जो दूर है और चली गयी है अपनी ससुराल
पिता की तो बात ही क्या
उन्होंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी
अपनी नन्हें संतानों को
उनकी छोटी-छोटी जरुरतों की
कोई भी सेवा देने में
जो हमारे समय में आज
नहीं हैं वर्तमान
मां आज बीमार है
फिर भी कभी-कभी प्यार से पोंछ देती है वह मेरा मुंह और सर
या फिर मैं ही पोंछ लेता हूं कभी-कभी पसीने से तर-बतर
उसके आंचल से अपना मुंह
अपने कर्मप्रधान समय में वह भी दे चुकी हैं
अपनी हर संभव सेवा
सबसे बड़ी बात मां को नहीं पड़ती जरुरत
किसी भी तौलिये या गमछा या अंगोछे की
बीमार मां जो बमुश्किल ही उठ पाती है अपने बिस्तर से
अपनी आंचल से पोंछती है हमारा मुंह
और भर देती है हमें प्यार से
- राकेश कुमार श्रीवास्तव
मुझे
मेरी मां की
मेरे पिता की
दीदी की
मेरे भईया की
....जब वह (नाई)
बड़ी तल्लीनता से
मेरी दाढ़ी बनाने के बाद
मेरा मुंह तौलिये से पोंछता है
ठीक उसी समय याद आती है मुझे
दीदी जो इसी प्रकार
मेरे स्कूल जाने के पहले
मेरे नहा लेने के बाद गमछे से मेरा
सर व मुंह पोंछती थी
जो दूर है और चली गयी है अपनी ससुराल
पिता की तो बात ही क्या
उन्होंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी
अपनी नन्हें संतानों को
उनकी छोटी-छोटी जरुरतों की
कोई भी सेवा देने में
जो हमारे समय में आज
नहीं हैं वर्तमान
मां आज बीमार है
फिर भी कभी-कभी प्यार से पोंछ देती है वह मेरा मुंह और सर
या फिर मैं ही पोंछ लेता हूं कभी-कभी पसीने से तर-बतर
उसके आंचल से अपना मुंह
अपने कर्मप्रधान समय में वह भी दे चुकी हैं
अपनी हर संभव सेवा
सबसे बड़ी बात मां को नहीं पड़ती जरुरत
किसी भी तौलिये या गमछा या अंगोछे की
बीमार मां जो बमुश्किल ही उठ पाती है अपने बिस्तर से
अपनी आंचल से पोंछती है हमारा मुंह
और भर देती है हमें प्यार से
- राकेश कुमार श्रीवास्तव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें