शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

अस्तित्व...



अस्तित्व
एक बहुत ही अर्थपूर्ण शब्द
शायद यही है
जिसे अब तक 
खोया है मैंने
बीमार विधवा माँ में
दरकते हुए सपनों
.. ...उजाड़...दिशाविहीन
उद्देश्यविहीन....
अंतहीन रास्तों में खोजता
अपनी और माँ की
स्मृति-विस्मृतियों में
पिता के साथ
बिताये गये क्षणों में
टटोलता
कई बार ही हुआ हूं
मैं अस्तित्वविहीन
जब-जब हुआ हूं
... .आहत...!
अस्तित्व का हो जाता है
.....एहसास-
पता चल जाता है
पानी के उस स्तर का
जहां पर मैं
खड़ा हुआ रहता हूं..

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