गरीबी और तिल-तिल के अभाव से तंग आकर एकबार मैं और मेरा एक दोस्त जिसका नाम सुदेश है, हमदोनों ने आपस में तय किया कि चाय बेचेंगे। चाय बेचने की बात पर चर्चा हमलोग चाय दुकान में ही बैठकर कर रहे थे। चाय बेचने की बात पर चर्चा हुई तो सवाल उठ खड़ा हुआ कि चाय बेचेंगे कहां। फिर हमने निर्णय लिया कि हावड़ा स्टेशन या ब्रिज के आसपास। भगवान ने गरीबी तो दे ही दी उपर से शर्म और संकोच भी दे दिया। कैसा शर्म? कि हम चाय नहीं बेच सकते..अंडा बेचकर कमा नहीं सकते..या फिर फल और तरकारी नहीं बेच सकते। फिर भी हमने बड़ी हिम्मत की। जब हावड़ा स्टेशन के करीब बेचने का निर्णय हो ही गया था तो फिर अब हमारे बीच यह सवाल खड़ा हो गया कि अगर कोई परिचित आ गया तब हम उसे क्या जवाब देंगे। फिर मैंने कहा कि सुदेश यदि तुम्हारा परिचित आ गया तो तुम ये कहना कि मेरा दोस्त है। यहां बैठा हूं चाय पीने के लिये। अर्थात् सुदेश का परिचित अगर आ जाय तो मैं चायवाला बन जाऊंगा और यदि मेरा परिचित आ जाय तो सुदेश चायवाला बन जायेगा। इस बात पर हम दोनों सहमत हो गये। फिर एक घोर समस्या हो गयी। वह क्या? वह यह कि यदि हमदोनों का ही कोई कॉमन परिचित हमारे सामने आ धमका तब क्या करेंगे? हमलोग सोच में पड़ गये। आखिरकार कुछ नहीं सूझा तब हमने निर्णय लिया कि यदि कोई हमारा कॉमन परिचय का व्यक्ति आ जायेगा तो हम हावड़ा स्टेशन के बगल में आखिर क्यों चाय बेच रहे हैं..प्यार से उस व्यक्ति को हावड़ा ब्रिज के करीब ले जायेंगे और उसे उपर से धक्का दे देंगे। न रहेगा और न कहीं जाकर बतायेगा कि हमलोग चाय बेच रहे थे। यह सोचकर हमदोनों को खुब हंसी आ रही थी। एक साधु बाबा स्वामी आत्मप्रकाश हमारे करीब ही बैठे हमारी बातें सुन रहे थे। उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं आप उसे क्यों भला ब्रिज से गंगाजी में क्यों फेकेंगे। इसकी जरुरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने जो सलाह दी वह भी काबिले तारीफ थी लेकिन फिर हमारी शंकाओं ने उनकी उस सलाह को भी निर्मूल कर दिया। उन्होंने कहा कि जब कोई ऐसा परिचित आ धमकेगा तब आपलोग दोनों अंजान बन जाइयेगा उससे तो बातें कीजिएगा लेकिन जब वो पूछेगा कि आपलोग यहां क्या कर रहे हैं तब आपलोग यह कहिएगा कि चाय के लिये बैठे हैं चायवाला हमें बैठाकर बाथरुम गया हुआ है। फिर जब मैंने स्वामीजी से यह पूछा कि उसी समय कोई आसपास का व्यक्ति उस अतिथि के सामने ही बोल पड़ा कि ऐइ सुदेश दूटो चा दे रे ..बा ऐई राकेश एकटा पारूटी निये आय तब हम क्या करेंगे? अब इसका जवाब स्वामीजी के पास भी नहीं था। अंततः चाय बेचने के अपराध को छुपाने के लिये एक और अपराध करना और फिर उस अपराध को छुपाने के लिये एक और ...और अंततः अपराधों का चेन कहां तक सम्हालते आखिरकार। उससे अच्छा था चाय बेचने का प्रोग्राम कैंसिल और फिर..मैंने हमारे चायवाले नागो चाचा को बोला दूगो चाय दीजिएगा चाचा थोड़ा कड़ा करके बनाईयेगा और हां बिस्कुट भी दीजिएगा।
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