

2.11.2014
कल शाम को कोई जब आया और कॉलबेल बजाया तो भाभी ने जाकर दरवाजा खोला। धोबी कपड़े देने आया था। अभी भाभीजी कपड़े काउंटिंग में लगी हुई थीं कि उसी का फायदा उठाकर मेरी नन्ही बेटी पड़ोसी के खुले दरवाजे देखकर बेधड़क उनके घर में चली गयी। पड़ोस में भी एक बच्ची रहती है वह उसी के साथ खेलने की लालच में चली गयी। पुणे जैसे बड़े शहरों में आमतौर पर सब अपने-अपने को लेकर ही व्यस्त रहते हैं। सारे 'बड़े' परेशान हो गये। पड़ोसी महोदय/महोदया भी परेशान हो गये। हालांकि महोदया उपरी मन से कहती रहीं छोड़ दीजिए..खेलने दीजिए बच्ची है। लेकिन वे दरवाजे खुले ही छोड़कर बाहर ही इंतजार करती रहीं कि कब हम उसे उठाकर अपने पास ले आयें। हम जब उसे लाने की कोशिश किये तो वह (गरिमा ने) बिल्कुल ही आने से मना कर दी। आखिरकार पड़ोसी महोदया ने अपनी समझदार बच्ची को आंखों से ईशारा किया कि वह बाहर बरामदे में चली आये ताकि मेरी बच्ची भी बाहर आ जाए। अपनी मम्मी के कहने पर वह बाहर तो आ गयी साथ में मेरी बच्ची भी लेकिन वह भी तो आखिर बच्ची ही थी। वह मेरी बच्ची के साथ खेलती रही। फिर उक्त पड़ोसी महोदया की बच्ची ने मां की क्रूर आंखों के ईशारों से भयभीत होकर घर में चली गयी और मेरी मिसेज जबरदस्ती गरिमा को घर में खींच कर ले आयी। गरिमा जोर-जोर से रोने लगी। घर के अंदर भैया ने उसे हल्की सी डांट लगाई, कहा कि आइंदा से उधर गयी तो फिर तुम्हारी खैर नहीं। भैया ने उससे कान पकड़ने को कहा उसने कान पकड़ा फिर यह कहने को कहा कि फिर उधर नहीं जाएगी उसने ना में सर हिलाया। उसका रोना देखकर उसे मैं दूसरे कमरे में मनाने के लिए ले आया। उससे मैंने कहा कि अब कहीं नहीं जाओगी न। वह बोली नहीं जाएंगे पापा। फिर उसने कहा कि बड़ी मां ने मुझे दीदी के साथ नहीं खेलने दिया। मम्मी ने भी मुझे दीदी के साथ नहीं खेलने दिया। बड़े पापा ने भी दीदी के साथ नहीं खेलने दिया। मैंने उसे समझाया कि बेटे दूसरों के घरों में नहीं जाया करते हैं। अचानक से गरिमा ने मुझे समझानेवाले लहजे में मुझसे सवाल किया और कहा कि पापा दीदी को भी कोई दूसरा कहता है क्या। दीदी तो दीदी होती है। फिर मुझे क्यों नहीं खेलने दिया उसके साथ। मैं निरुत्तर था। बस मुंह से यही निकला कि कल दीदी के साथ हम दोनों खेलेंगे बाबु!
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