शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

जान को जान कहा तो...

जान को जान कहा तो 
जान लेने पर उतारू हो गयीं जान
वो नहीं जानती कि उनकी
उलझने खतम हुईं हैं मात्र
वो भी सिर्फ मेरी मर्जी से
उन्होंने समझा कि उन्होंने डरा दिया
पर उन्होंने नहीं समझा
उनकी खुशी में ही मेरी खुशी है
मैं हटा भी तो क्या हुआ
एक बार जान को जान ...कहा तो सही
अपने सच्चे मन की लय में बहा तो सही
अब तो जान ये शरीर बेजान है
ये तो बस अब आत्मा का परिधान है..
पर न ही मैं तंद्रील हूं और न ही लाश
और न ही मैं जीवन से हूं बदहवास
प्रश्न यह भी नहीं कि मुझे क्या चाहिये
न कोई जिज्ञासा आपसे न कोई खरास
प्रश्न है यहां सिर्फ आपकी खुशियों का
जहां भी रहें आप रहें खुश
पूरी हो आपकी हर मुराद...

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